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________________ ३६. अविशेष पदार्थो कया, एम बन्ने रूपमा भिन्न भिन्न पणे वहचन करीने मुकता हता. || अने ज्यारे, द्रव्य, क्षेत्र, काल, अने भाव, आचारनी विवक्षाथी, पदार्थों विवेचन करवा बेसता, त्यारे, सर्व पदार्थोंनं विवेचन आचारज रूपमा करी लेता । अने ज्यारे, चार निक्षेपना विचारमां उतरी एडता त्यारे, जे जे निक्षेपमा जेनो समावेश थतो होय तने पण करीनेज बतावता, जुवो आ विषयमां अनुयोगद्वार नामनुं सूत्र । अने ज्यारे, प्रमाणना विषयमां उतरी पडता त्यारे, सर्व पदार्थोनं, प्रत्यक्ष, अने परोक्ष, ए वे प्रमाणधी स्वरूपने जोड़ लेता हता, जुवो आ विषजमां नंदी सूत्र, अथवा विशेपावश्यक सूत्र । अने ज्यारे, सात नयोना विचारमां उतरी पडता त्यारे, जे जे विषय जे जे नयमां उतारवानो होय, तेने, ते ते नयमां उतारीने बतावता, जुवो आ विषयमा सूचनामात्रथी अनुयोगद्वार, विशेषपणाथी सम्मतितर्क, अथवा नयचक्र, आदि महान् महान ग्रंथो. आ विषयमा विचार वणा लंबान रूपे छतां पण टंक द्रष्टां तथी कही बताये छे. ॥ जेसके, जीवनो एक भेद, चेतना लक्षणधी, आ चेतना लक्षणथी सर्व जीवोने पण जोड़ सकीस्युं तेमज आगल करेली जीवनी बीजी विवक्षाओनो समावेश पण आ एकज विषयमा पण करी सकीस्युं, जेमके, संसारी अने मुक्तिना जीवों शुं ? आ चेतना लक्षणथी जूदा छे ? जूढ़ा कोइ दाहाडो पण नही थइ सके. | तेमज सूक्ष्म. अने वादरपणानी विवक्षाथी पण जूढ़ा पडी सकसे नही. | तेमज त्रस अने थावरमां पण चेतना लक्षण, अनुगत पणज रहेतुं छे. । अथवा गण लिंगनी विवक्षार्थी जीवना भेद करीस्युं, तो पण चेताना लक्षण, व्यास पणेज रहेलं छे । अने चेतना लक्षणमां आ त्रण लिंग पण, व्याप्त पणे रहेलांज छे. अथवा 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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