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________________ ܐ ܆ ज विवेचन करी, आंगना विचाराने तपासीशं. हवे ज़वा - पृष्ट. ६७ ओ. १ मी थी - ९ दीपक समकित - दीवा वीजा उपर प्रकाश नाखे पण पोतानी तलेती अंधारुज रहे तेम, दुर्भवी. अने अभवी, जीवों अन्य जनोने प्रतिबोधी मोक्षनां साधनो बतावे, पण पोताने, गंडी भेद, धाय नहीं, संयम लइ द्रव्यक्रिया करे पण अंतर को रंज रहे, एवा पुरुषनुं समकित ते ' दीपक' समकित गणाय छे. " अमो तो परमेश्वरने खोले बैठेला छीए “ एवं समजनारा खुद जैन वर्गनाज केटलाक साधुओ-सफेद वस्त्रवाला पीळां वस्त्रवाळा, तेमज दिशा वस्त्रवाला साधुओं, पण दीपक समकिती होय छे || विचार - आ तमारा लेख उपरथी विचार करतां तमो क पंक्तिमा छो ते कांइ समजातु नथी, केमके, तमारा मान्य करेला सूमां तो आभेदोज नथी, अने जे, दीपक सम्यक्क वाला होय, ते पण जैनना चालता घोरी मार्गमांज होवानो संभव छे, केमके बीजा जीवोने प्रतिबोधी मोक्षनां साधनो बतग्वनार पुरुष, पोते अंतरथी धर्मनी श्रद्धा रहित कोरोकडक होय तोपण, अथवा गंठीभेद न थयो होय तोपण, प्रथम आपणे आप लोकदेखाव पूर्ति पण जैननी शुद्ध क्रिया करी, बीजाने बताव्याविना, तेमज शुद्धरूप जैनमार्गनो ऊपदेश आप्याविना, मोक्षनां साधनो बतावेछे, एम कहीशकायज नही. ते कोण हसे अनेकोन नही, तेनो निश्चय, ज्ञानी महाराज जकरी सके । अनं तमोए जे सफेत वस्त्रवाला, पीला वस्त्रवाला, तेमज • दिशा वस्त्रवालामां, निश्चय करी बताव्यो, तेथी अमोतो एमज कही ये ले के, आ दुनीयामां तमारा जेवो कोई बीजो महापुरुषज नही होय, केमके, आ महागूढ विषयमां वचण करीने बतावी दीधी : अमो " पुछीछे के, तमोए तमारा पक्षना ढूंढक साधुओने, कइ पंक्तिमां दाखल कर्या ? केमके जे दीपक समकितवाला होय तेपण, जैननी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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