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________________ २२ शुद्ध चालती क्रीया करवावालामां, तेमज शुद्ध प्ररूपणा करवाबालामांज, होवानो संभव करीसकाय । परंतु तमो ढूंढकोतो तेमनाथी ( अर्थात् चालती शुद्ध क्रिया करवावालाथी. अने शुद्ध प्ररूपणा करवावालाथी ) भिन्नपणे थइने वास करोछो तेथी ते श्रुद्ध क्रियावालानी. अने शुद्ध प्ररूपणा करवावालानी पंक्ति मात्रमां पण दाखल थइशकता नथी ते माटेज पुछवं पडयुं छे. आवा मूढपणाना लेखमां तमोने अमारे कहेवं शुं विचार कर्याविना स्वछंदपणे आवा अनुचित लेख लखी फोगट हास्यना पात्र शा वास्ते बनोछो. अने एवा अनुचित लेख लखवाथी कांई तमोने धनना गठडा मलीजाय एम समजवं नही. तेतो न्याय मारगना लेखथीज मलसे. तेम परभवना कार्यनी सिद्धि पण न्यायनाज लेखथी से. परंतु विपरीत लेखथी थवानी नथी एम खास विचार करवानो छे इत्पल मधिकलिखनेन ॥ इतिश्री मद्धिजायानंद सूरीश्वर लघुशिष्येनाऽमरमुनिना धर्मना दरवाजा संबंधि सम्यक्तनाम्नस्तृतीय प्रकरणे तत्वाsतत्व विचार: संकलितः || के चिन्मूलानुकूलाः कतिचिद पिपुनः स्कंध संबंध भाजः छाया मायांतिकेचित्प्रतिपदमपरे पल्लावानुल्लवंति पाणौ पुष्पाणि केचिदधति तदऽपरे गंधमात्रस्यपात्रं वाग्वल्ले: किंतु मूढाः फलमहह नहि द्रष्टुमप्पुत्सते ॥ १ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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