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कोइ मुंडित होत तो वधारे शिक्षानां वचन कहेतो. तमने तो मात्र एटलंज कहुं छु के, विचार पुक्त कर्या वगर, लांबा लांबां जे पगलां भरोछो ने, दुर्भवी अभवी आदि वचनोंने वापरो छो, ते तमाराज आत्माने दुःखदाइ थशे. बीजा कोइ दुर्भवीने अभवी थवाना नथी. आ द्रव्य सम्यत्क, अने उपदेश सम्यत्कनो, विचार किंचित्मात्र करी बतायो.। हवे भाव सम्यत्क. अने निश्चय सम्यत्कनो, विचार तमाराज लेखथी किंचित् मात्र करीये छे. ।। भाव सम्यत्कमां जीवादि नव तत्त्व. अने पचीश क्रिया विगेरेने जाणीने सर्दहे. ॥ अने निश्चय सम्यकमां, ज्ञान, दर्शन, चारित्र तपः ए चारने विषे, निश्चय व्यवहारादि २५ बोलनुं स्वरूप जाने । एमां विचारवान ए छे के, ए बे सम्यत्कना विषयमा तमोए भेद शो करी बताव्यो, ते काइ समजायुं नही. तमो एज केहशो के, भाव सम्यत्कमां नव तत्वादिकने सर्दहे, अने निश्चय सम्यत्कमां ज्ञानादिक चारना स्वरूपने जाणे, तेम कहेवाने तमोने अबकाश नथी. केमके भावसम्यकमां पण नवतत्त्वादिक जाणी शुद्ध अंत:करणधी सर्दहे एम लखेलुं छे. अगर तमो एम कहेशो के, प्रथमना भाव सम्यकमां सर्दहवापणुं छे अने निश्चयसम्यकमां सर्द हवापणुं अमोए लग्यु नथी, ते पण कही शकाशे नही. केमके ज्यां सर्दहवापणुं नही होय त्यां समकितपणुं नथी रेहतुं, तो निश्चय सम्यकपणुं क्याथी रहेशे. छेवट तमो एज केहशो के, निश्चय सम्यक आव्या पछी पार्छ नतुं नथी. अने भावसम्यक पार्छ नतुं रहे छे, ते पण नमारु केहबुं समज्या वगरनुंज छे. । केमके भावसम्यकमां, अने निश्चय सम्यत्कमां, उपशम सम्यक, क्षयोपशम सम्यत्क, अने क्षायिक सम्यक, ए त्रण मूल भेदोनो समावेश थाय. तेथी भाव सम्यत्कमां, तेमज निश्चय सम्यकमां, एक क्षायिक सम्यक विना, बीजा सम्यत्कनो एवो निश्चय नथी थइ शकतो के, आ
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