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वेलु जायज नही. मात्र एटलोज निश्चय करी शकाय छे के, ते जीव अंते मोक्षगामी जरुरज थाय. । वास्ते जे भाव छ, तेज निश्चय छे, अने निश्चय छे तेज भाव छे. मात्र नामना भेदथी तमोए समज्या वगर कुटी मारेलुं छे. एमां विशेष ए छे के, द्रव्यसम्यस्कनी साथ भाव सम्यत्क जोडेखें छे. । अने निश्चयसम्यत्कनी साथे, व्यवहार सम्यत्कने विवक्षाना आधीन थइ जोडीने बतावेलु छे. । परंतु बन्ने प्रकारनी विवक्षामां अर्थपाये एकनो एकज निकलवानो छे. मात्र विशेष ए छे के, निश्चय वस्तु शु चिज, अने भाववस्तु ते शुं चिज छे, तेना परमार्थनी तमने खबर न पडवाथी, आपणा मन गोठतो अर्थ करी, पंडिताइ प्रगट करी छे. । परंतु एटलो शोच न कयों के, एवी जुठी पंडिताइ कोण चालवा देशे ॥
वाडीलाल. पृष्ट. ४३ मां ४ थु व्यवहार समकित, संवेगादि पांच लक्षणथी प्रवर्तवं ते. (एक पुस्तकमां लख्युं छे के-६७ बोलमांना ६१ बोलना गुणे करी सहित उपशम. अने क्षयोपशम. समकिती जीवतुं जे समकित ते व्यवहार समकित.।
विचार-आ लेख पण प्रकाशकनो समज्या वगरनोज छ, केमके नतो व्यवहार सम्यक समज्या छे, तेमज नतो निश्चय सम्य. त्कने समज्या छे, तेमज नतो सम्यत्कना लक्षणनो अर्थ पण समज्या छे.। केमके, उपशम सम्यत्क, अने क्षयोपशम सम्यत्क, ए बन्ने भेद व्यवहारसम्यत्कना घरना नथी तेतो निश्चय सम्यत्कना घरना कहो, अगर भाव सम्यत्कना घरना कहो, तो पण अर्थ तो एकनो एकज छे. परंतु जुदापणुं कांइज नथी. कारण के जैन सिद्धांतोमा मुख्यपणाथी जीवना निज गुण रूप उपशम, क्षयोपशम, अने क्षायक, ए त्रणज सम्य क छ। एने भाव सम्यक कहो अगर निश्चय सम्यक कहो. परंतु उपशमादि त्रण भाव सम्यक सिवाय मुख्यपणाथी सम्यत्कनो चोथो
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