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________________ जूवो के. पृष्ट. ३९-(१) पेहलु द्रव्य समकित-श्री वीतरागदेव अगर तेमनी आज्ञानुसारी मुनिराजनो, बोध सांभली कोइ माणस, मात्र श्रद्धाथी तेने सत्य माने. इत्यादि.।। पृष्ट. ४५ मां--(६) टुं उपदेश समकित-गुरु आदिना उपदेशे करीने मलेलं समाकित ते.।। पृष्ट. ३९ मां-(२)वीज भाव समाकित.जीव अजीवादि नवतत्व काइया आदि पचीश क्रियाए विगेरे अनेक भेद जाणी, शुद्ध अंतःकरणथी सर्द हे ते.। पृष्ट. ४० मां-(३) त्रिजु निश्चय समकित, ज्ञान दर्शन-चारित्र-तपः एचारने विषे, निश्चय व्यवहारादि २५ बोलनुं स्वरूप जाणे तेवा माणसनुं ।। प्रथम आ बबे भेदनो विचार करीए छे के तमोए, ? ला द्रव्य सम्यत्कमां, अने ६ ठा उपदेश सम्यत्कमा फरक करी बताव्यो ! तमो एज कहेसो के, वीतराग देव अने मुनिनो बोध, द्रव्य सत्यकमां. । अने छठा भेदमां, एकला गुरुनो उपदेश होय, तो शुं आ छठा भेदमां वीतराग देवनो बोध काममा आवतो नथी के ? जे भेद करीने बतावो छो. अने शुं वीतराग देव गुरुपणामां दाखल करी शकाशे नहीं के ? ते पण छटा उपदेश सम्यकमां, आदिपदथी तमोए दाखल तो करेलोज छे. तो पछी तमारा लेखथी द्रव्य सम्यकमां, अने उपदेश सम्यकमां, शो भेद करीने बताववाने मागो छो ? तेनो विचार तमोज एकांतमां बेसी ने करी जुवो, के तमारुं लखाण तमाराथी योग्य रीते, जैनमार्गनी शैली प्रमाणे, थयेटु छे के नही ? । आवी रीते विचार विनानो लेख लखी, विचार शक्ति पामेलानी पंक्तिमां तो भलवाने जावो छो, अने जे वृक्षनी डाल उपर बैसी आराम भोगवो छो, तेने आपणी अल्पबुद्धिनो कुहाडो, हाथमां लेइ कापवान तैयार थया छो. पछी कया विचारवाला पुरुषोनी पंक्तिमां भलवाने मागो छो। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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