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________________ १६४ अमारे कया प्रकारनो विचार करवो ? || सामायिक वालाने, अने से साधुने, निरर्थक प्रयास वाला समजवा के एकादने उपयोग वालो समजवो. ॥ आ विषयनो विचार पण पाठकवर्गज करी लेशे. ॥ ४ ऋजुसूत्रनय — कोइ माणस, सामायिकमां होय पण, तेनुं मन वेपारमां दोडं होय तो तेने वेपारी कहे. || अने ज्ञाननी मान्यतामा -ज्ञान पांच प्रकारनुं छे, जे पैकी छदमस्थने चार ज्ञान होय, परंतु ऋजुसूत्रनय वालो माणस, वात करती बखते, जे ज्ञान तेनी पासेधी सांभळे, ते एकज ज्ञान तेनामां छे एम कहे. || ॥ विचार—पथमना लेखमां, सामायिकवालाने, वेपारी - रावी, निरर्थक रूपे उराव्यो । परंतु आ बीजा लेखथी विचार क रवानो एछे के - ते चार ज्ञानी साधुनी पासेथी, कयुं ज्ञान सांभलीने, एक ज्ञान छे, एम कहुँ. अने ते चार ज्ञान सार्थकके निरर्थक । || आ विषयनो विचार करवानुं पण, वाचकवर्गनेज सोंपी दउछं. ॥ ५ शब्द नय - इंद्र, पुरंदर, अने शचीपति, प्रथमनी मान्यतामा अने बीजी ज्ञाननी मान्यतामां सम्यक्त्व सहित (९) नवतनुं ज्ञान ते. ॥ || विचार - बीजी ज्ञाननी मान्यतामां तो सम्यक्त्व सहित नव तत्त्वनुं ज्ञान ते तो समजायुं । परंतु पेहली व्याख्याना इंद्रादिक, शब्द मात्रनुं ज्ञान कराववावाला छे, तेनो विचार दृढके शुं ? कर्यो, अने ढकनी मान्यता कया प्रकारनी थई ? || Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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