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________________ १६३ २ संग्रहनय - प्रथमनी व्याख्यामां लख्युं हतुं जे-दंश सामाकिने, एक सामायिक कहे. । अने घणा दावारने, एकज दातार कहे. । अने ज्ञाननी व्याख्यामां पांच प्रकारना ज्ञानने, एकज ज्ञान मान्युं हतुं ॥ विचार - ए छे के - आ बीजी नयने, उपयोग विनानी माने तो, नतो एके सामायिक उपयोग वाळु रहे, तेमन दातार पण अदातार, तेमज पांचे ज्ञानने, एक ज्ञान करीने मान्युं हतं, तेटला पुरतु पण रहि शकतुं नथी । तो पछी आ ढूंढकना लेखथी, कया प्रकारना तत्वने, अमारे ग्रहण करवो ! | आ संग्रहनयनी, मान्यतानो विचार पण, वाचकवर्गेज करी लेवो. ॥ . ३ व्यवहारनय – नैगमनय वालो- पथरणु जोइने, सामायिक वालो पुरुष कहे । अने व्यवहारनय वालो, सामायिकना पाठनो उच्चार सांभळीने, सामायिक वालो कहे. । नैगमनय करतां व्यवहारनय वाळो वधारे खात्री करीने आपे छे. | अने ज्ञाननी मान्यतामां बाह्य ज्ञान जोड़ने ज्ञानी कहे ते - कोइ डोल घालु साधु व्याख्यान वांचे तेमां, पुराण, कुरानना, अशुद्ध अने असंबंद्ध फकरा, तथा नाटकना रागोटा सांभळे त्यारे व्यवहारनयनी दृष्टि वाली मषदा तेने ज्ञानी माने छे. ॥ विचार — पथमनी व्याख्यामां सामायिकना पाठनो उच्चारण करवा वालानी मान्यता बतावी हती. । आ बीज़ी व्याख्यामां पुराण, कुरानना पाठ वालो साधु बतायो, आ व्याख्यामां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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