SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६२ ते ए छे के आ ढंढके, पाछळथी ज्ञान उपर सात नयो उतारीने एम लख्युं जे-सम्यक्त्व सहिन नव तत्वनुं ज्ञान ते, " शब्दनय प्रमाणे" ज्ञान. । अने सम्यक्त्व सहित विरक्तनुं ज्ञान ते, " समभिरूढ नय प्रमाणे " ज्ञान. । अने केवलज्ञान ते, " एवं भूतनय प्रमाणे" ज्ञान. ॥ ___ आ लेखथी ढूंढके एम सिद्ध करीने बताव्युं के, जैनोने व्रण नयोज प्रमाण रूपे होय. । केमके सम्यक्त्व सहित नव तत्वना ज्ञाननी सरुवात, शब्दनयथी करीने बतावी छे. । तेथी प्रथमनी चार नयो, निरर्थक, अने उपयोग विनानी, ठराववा प्रयत्न कर्यो छे. । परंतु पोतानाज लेखमां परस्परनो विचार, बीलकुल कर्यो नथी. । अने केवल मूढपणा धारण करी स्वछंदपणे कलम चलावी छ । वो-प्रथम नैगम नयनी मान्यतामां लख्युं हतुं जे-समदृष्टिने, सिद्ध मानवो. । अने चौदमा गुणस्थाने वर्तता साधुने, संसारी कहेवो. । अने नगम नय प्रमाणे ज्ञानमा नव तत्व-छकायना बोल के, एकाद थोकडो, पाठे करनार साधुने, गामडीआओ ज्ञानी कहे छ. । एम नैगम नयनी मान्यतामां लखीने बताव्युं हतुं. ॥ तो अब विचार करो के-समदृष्टि, अने चैदमा गुणस्थाने वर्त्ततो साधु के जे साक्षात् सिद्ध स्वरूपी जीव, ते काइ उपयोग वाला नथी के ! अने, नव तत्वादिकनो पाठी साधु, शुं ! अज्ञानी थइ गया के ! आते अमारा ढूंढकनो, नयोना विषयनो लेख, कया प्रकारनो थयो समजवो ! अने अमारे पण विवेचन कया प्रकारथी करीने बताव! ॥ ___ आ ढूंढकनी नैगम नयनी मान्यतो विचार, पाठक वर्गनेज, करवानुं सोपुं छं. ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy