SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीतराग भाषित छ, तेमांज करी सकाय छे. । बाकी विपरीत ज्ञान होय ते तो, नयाभास रूपे होय छे, ते नयोना लेखामांज नयी गणेखें, छतां आ ढुंढके केटलं बधुं. उधुं वेतयु छे. ते आगळ प्रसंगे बतावीशं. ॥ ॥४ ऋजु सूत्रनय प्रमाणे ज्ञान-ज्ञान पांच प्रकारनुं छे, जे पैकी छदमस्थने चार ज्ञान होय, परंतु ऋजु सूत्रनयवालो माणस, वात करती वखते जे ज्ञान तेनी पासेथी सांभळे ते, एकज ज्ञान तेनामा छ एम कहे. ॥ ॥विचार-ऋजु सूत्रनयवालो, चार ज्ञानमार्नु एकज कह. ते शुसम्यक् ज्ञान कहे के मिथ्याज्ञान कहे. अने आ ऋज़ मूत्रना मतमां, तमारा ढूंढकोनी मान्यता कया प्रकारनी थई. ॥ . ॥ ५ शब्दनय प्रमाणे ज्ञान-सम्यक्त्व सहित (९) नवतत्व- ज्ञान ते. ॥ . ॥ ६ समभिरूढनय प्रमाणे ज्ञान-सम्यक्त्व सहित ज्ञान होय, अने परगुणथी विरक्तपणुं होय, तेवाज ज्ञानने आ नयवालो ज्ञान माने.॥ ७ एवं भूतनय प्रमाणे ज्ञान-केवल जाननेज ज्ञान कहेवायः॥ पाठक वर्ग : मारा तरफथी करेली, वखत वखतनी मूचनाओथी, आप लोको समजी गया तो हशोज, अने तेथी योग्याऽयोग्यनो विचार पण करीज लेशो. । तोपण बे शब्दो फरीयी लखीने सूचना तरीके जणाबु छु.॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy