SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६५ ||६ समभिरूढनय - साडी, कपटु, अंगवस्त्रादिक, स्त्रीना कामादिकनां, स्त्री लिंग छे । तेथी साडी कहे, परंतु वस्त्रके, साडलो, न कहे । अने बीजी ज्ञाननी व्याख्यामां - सम्यक्त्वसहित ज्ञान होय, अने परगुणथी विरक्तपणं होय, तेवा ज्ञानने, ज्ञान माने ॥ ॥ विचार - बीजी मान्यतामां परगुणथी विरक्तपगुं एटले शं गौतम स्वामी जेवाके, कोइ बीजा जेवा। केमके गौतम स्वामी पण, प्रथमनी अवस्थामां पररूप भगवानना गुणथी, विरक्त न थया हता. | वास्ते आपण एक विचारखा जेवुं छे. । अने पेहली व्याख्यामां - साडी कहे, अने वस्त्रादिक न कहे, तेमां ढूंढकनी मान्यता या प्रकारनी थइ | अने बन्ने व्याख्यानोनो मेल सो थयो ? ॥ ॥ ७ एवं भूतनय - दाणा जोखनारो माणऩ, लाभोजी, बेयोजी, ऋणोजी, शब्दोने पकडी राखे छे, पण दाणाने के बाजवाने पकडतो नथी । अने बीजी ज्ञाननी व्याख्यागां - केवल ज्ञाननेज ज्ञान केहवाय. ॥ ॥ विचार - शब्दाने पकडवानुं काम, शब्दनयनुं हतुं, ते एवं भूतनयमां, क्यांथी आवी गयुं । अने आ नयवालो, केवल ज्ञानने, 'ज्ञान' कहे. । एवो लेख, ढूंढकोना बापदादा कये ठेकाणे लखी गया छे । तेनो पण विचार करवो जोइये. || ॥ पाठकवर्ग । हुं हवे वधारे लखवानुं बंध करी, एटलुंज क हुंके, अमारा ढूंढ़कोए, ज्यारथी परंपराना गुरुने छोड्या छे, त्यारथी तेओने न तो " सम्यक्क " ना विषयनी खबर छे । न तो जैनोना " 39 प्रमाण ना विषयनुं भान छे । न तो " निक्षेपो" ना विषयनुं ज्ञान छे. न तो " द्रव्य, क्षेत्र, काल, अने भाव" ना स्वरूपने जाणे छे। अने आ " नयोना " विषयनुं जे कांह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy