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________________ १५६ ॥ ढूंढके, अगडं बगडं रूपे लखेलुं, सात नयोनुं स्वरूप ॥ ।। पृष्ठ. ७६ मां - १ समद्रष्टि जीवने सिद्ध मानवो । अथवा चांद्रमा गुणस्थाने वर्तता साधुने संसारी कहेबो । २ श्रावक दयालु होय ए सिद्धांत उपरथी, कोइ स्त्रीस्तीमां जरा दया जोइने, तेने श्रावक कहे । ३ लुगड़े वणवा मांडयुं हजी एक तार नांख्यो तेने गई कहे । एवीज ते ४ लुगडं वणाइ रहेवा आन्यं होय, मात्र एक तार को होय तने लुगडं बण्युं नथी । एम आ चारे कारमां नैगम नयवाला माणसनी मान्यता होय छे. ॥ आमां अमारो विचार - आ चारे प्रकारमां नैगमनय वाला माणसनी मान्यता छे, एम अमारा ढूंढक भाइये लखीने बताव्यं. पण, कमां पुछवानुं एज छे के, एक नैगमनय, अने माणस पण एक, विषय वे चार, तेमां पण वचे प्रकार छे, त्यारे ए विषय - मां तमारी मान्यतानां समावेश, पहेला प्रकारमां करवो के, बीजा प्रकारां. 1 जो बीजा प्रकारमां तमारी मान्यतानो समावेश करवा जड़ये तो, ख्रीस्तीने श्रावक जाणीने तेनी साथे बधो व्यवहार क वानो प्रसंग नडे तेम छे । वास्ते आ नैगमनयनी मान्यताना लेखमां पण विचार करवा जेवुं छे ।। इति प्रथम नैगमनयः || २ संग्रहनय - १ दश जण सामायिक करता होय तेने, एकज सामायिक कहे. । अने २ घणा जणाना रूपैयानी, दानशाला होय पण, एकज दातार छे एम कहै. ॥ विचार - आ विषयमा अमारा ढूंढक भाइ शुं ! सामायिकपण माने छे के सामायिक रहितपणं, अने ते एकपणे के, अनेकपणे, तेनुं वाचक वर्गे विचारी जोवं एज प्रमाणे दातारोमां पण विचारी जोवं. ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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