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________________ १५७ ॥ ३ व्यवहारनय - पृष्ठ. ७७ थी. 'नैगम' अने ' व्यक् हार ' नयमां भिन्नता एटलीज छे के, नैगमनी दृष्टिवालो, पथरणं जोड़ने कहे के सामायिकवालो पुरुष छे । अने व्यवहारनी दृष्टिवालो, सामायिकना पाठनो उच्चार सांभले त्यारेज कहे. । बने बाह्यचेष्टा उपरथीज विचार बांधे छे। पण नैगमवाला करतां, व्यवहार नयवालो, वधारे खात्री करे छे. ॥ विचार-व्यवहार नयवालो माणस, पाठना उच्चारणथी सामायिकपणानी वधारे खात्री करे छे पण, अमारा ढूंढकभाइनी खात्री, कया प्रकारमा थइ, ते कांइ समजायुं नहि ! ॥ ।। ४ रूजु सूत्रनय - पृष्ट. ७८ थी. कोड माणस सामायिकमां होय पण, तेनुं मन वेपारमां दोडतुं होय तो, रूजु सूत्रनयवालो कहे के, अमुक माणस वेपारमां छे. ॥ विचार - आ अमारा ढूंढकभाइये, वेपारी मान्यो के, सामाfreवालो मान्यो ! तेनो विचार पण साथे करवोज जोइये ॥ ॥ ५-६-७ शब्दनय "" समभिरूढनय " अने "" (6 "" एवंभूतनय 11 ॥ ए त्रण नयवाला माणस, नाम, द्रव्य, अने स्थापना, निक्षेपने, अवथ्थु (अवस्तु ) माने छे । विचार - शब्दादिक ऋण नयोवाला, त्रण निक्षेपने, अवस्तु माने छे, ते तो प्रगटपणे तमारुं लखेलुं प्रसंग विनानुं समजायुं । परंतु १ समद्रष्टिनो सिद्ध । २ चौदमा गुणस्थानवालानं संसारी, ३ स्त्रीस्तीने श्रावक, । ४ एक तारना वणाटने लुगडं.। अने मात्र एकन तार आंछो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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