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________________ योनी निंद्या करी, मति कल्पनाथी गणधर महाराजाओने तुछ समजी, आपणा मन गमतो बकवाद करवावालानेज, लागतुं होय, एम हुं कल्पना करूंछु.॥ ॥ ढुंढक-मने घणी शंका थइ पडीके, जे प्रथमना त्रण निक्षेप, उपयोगविनाना निरर्थक, ते, आजकालना नवदीक्षित पुरुषोमां, भावसाधुपणानो आरोप करीने, प्रथमना त्रण निक्षेपर्नु वर्तन जोइ, ते पुरुषोने वंदना करीये छीए, तेधी ते प्रथमना त्रण निक्षेषज, उपादेय छे, ए शी रीते समजबु. । अने ए चार निक्षेपोना विषयमां तात्पर्य शो छे, अने अमारी ढूंढनीए, अने दूंढके, अमोने शुं समजावी दीथु, ते विषये हजी शुधी हुँ काइ पण समजी शक्यो नथी.। ॥मर्तिपूजक-अरे भाइ ढूंढक, ढूंढनीए, अने ढूंढके, चार निक्षेपोना विषयमां, जे काइ समजाव्युं छे, ते वधू विपरीते विपरोतज समजाव्युं छे. कारण जे गुरुज्ञान विनानां ते, पोतेज गोतामां पडेलां, बीजाने शुं समजावी देवानां हता. । विचार करो के, ढूंढनी, सूत्रनी बेचार लीटीना लेख मात्रने तो समजी शकी नथी, तोपण नियुक्ति पण ढूंढनी, भाष्य छे ते पणं ढूंडनीज, अने टीका ते पण ढूंढनी, आपो आप बनी बेठी अने बधा आचार्योने निंदी काहडी, पेला मूढ सेवकोमा केटलं वधू पंडितानीपणुं प्रगट करी बेठी छे ! ढूंढनी कुदी एटले, आ बुट इस्टाकिनने चस्मावाला तो एटला बधा कुद्याजे, बधा आचार्यों तो भस्मग्रहना भ्रमित. । वाहरे पंडितना दीचरावाह, अने तारा कुदकाने पण वाह. ॥ ॥ भगवानना ज्ञानादिक गुण वस्तुना जे त्रण निक्षेपो, अमारे खासपणे उपादेय, ते त्रण निक्षेपो निरर्थक, अने उपयोग विनाना, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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