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________________ १४२ अने भगवानना ज्ञानादिक गुणनो जे भावनिक्षेप, अमारा उपयो गमा आवतो नथी, ते आ लोकमां उपयोगी वतावे छे, आते अमारा ढूंढकोनी केटली बधी विपरीत मति समजवी ?। ॥ देख भाइ ढूंढक, आ चार निक्षपोना विषयमां, तने कुंची बतावू ते ध्यानमा राखी, बधी दुनियाना, पदार्थोना, चार चार निक्षेपो करतो जा.। अने हेय पदार्थोना चारे निक्षेपो त्यागतो जा. । अने ज्ञेय पदार्थोना चारे निक्षेपोथी ज्ञान प्राप्त करतो जा. ॥ अने उपादेय पदार्थोना चारे निक्षेपोने, अंगीकार कर तो जा, अने साथमां विचार पण करतो जा के, भगवानना वचनने अनुसरी, परमार्थने समज्या वगरनी, दुनीयाए पण एज प्रमाणे वर्तन करेलु छ. । अने तमारा ढूंढकोए पण, मृतक साधुनी, तेमज जीवता साधुओनी, छबीयोने पडावी, एज प्रमाणे वर्तन तो करेलुंज छे. । मात्र कोइ विशेष पापना उदयथी, वीतरागनी मूर्तिनाज वैरी बनेला छे. माटे हे भव्यो उपादेय वस्तुना चारो निक्षेपोने उपादेयपणे समजी तमो तमाएं कल्याण करो ?। ॥ देख भाइ ढुंढक, आ दुनीयामां पदार्थों, मुख्यताथी वे प्रकारनाज होय छे, । एक तो “ अभ्यंतर गुण क्रिया वाचक, अने बीजा " बाह्य स्वरूपथी गुण क्रिया वाचक "। " उदाहरण " घट पटादिक पदार्थो, केवल बाह्य गुण क्रियाना वाचको छे, जेमके-रक्तपीतादिगुण, अने घृतादि भरणरूप क्रिया. ॥ आ बेमाथी जे विवक्षाना आधीन थइ, निक्षेपो करवामांडया, ते ते निक्षेपो ते ते स्वरूपथी घटाववा. । नेनो विषय अमो अहियां लखता नथी, पण अभ्यंतर गुण क्रियाना धारक, तीर्थकरो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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