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________________ आगम मात्रनेज ग्रहण करी लीधेलो छे, तो पछी सा वास्ते प्रतिक्रमणमां, उठ बेस करी ओघा फेरवांछो ! सिद्धांतकारे तो आगम मात्रना पक्षने ग्रहण करीने तमारी ते क्रियाने पण निषेधी कहाडी छे. । तमो गुरु विनाओने, सिद्धांतोनो अभिप्राय समजवो, घणो कठीन समजुई. । तोपण पेली ढूंढनी, अने ढूंढकने, जूठो गर्व केटलो वधो थयेलो छे के, जाणे, वांए सूत्रोना पारगामी तो आजकालना जन्मला अमोज छीये. बाकी बधा थइ गयेला आचार्यों तो, भ्रस्म ग्रहना भ्रमित, || आ ते अमारा हूँढकोनो, केवी रीतनो मूढ पंथ हशे के, वधाए हाजी हाज करीन आपणा आत्मा उपर पडता हुवा, उत्सूत्र प्ररूपणारूप, तिक्ष्णधाराना कुहाडाना, घावनो, बचाव करवानो, कांइ पण विचारज करता जोवामां आवता नथी.। माढेथी तो तेओ पण एम कहे छे के, सूत्रना एक अक्षर मात्रनो लोप करे ते पुरुषो अनंत संसारी थाय, त्यारे शुं : मूल सूत्रना बधा पाठाना पाठ उलटावी, जूठे जूठ लखवावालाने, कांइ पाप लागतुं नहीं होय ! जे तेना लंगटीया यार बनी, देवनी, गुरुनी, अने सिद्धांतना पाठनी पण, अवज्ञा करवा मंडी पडे छे : शुं कोई पण विचक्षण पुरुष तेओमां, विचार करवावालो नही होय ! जे अनुयोगद्वारसत्रना पाटने नदन उलटावी, मुह मतिनी ए, त्रण निक्षेपने जूठा, निरर्थक, ठराव्या, तापण तेने कोइ पुछवावाळुज । नथी मलतुं : अनं उलटा ते उत्सवना लेखाने पण उत्तेजन आपवा तैयार थइ गया! आते संरारनी भ्रमणमां, कइ हद मुधीना जीवो समजवा ते काइ कळी शकातुं नथी । आनंदघन महाराजे पण कर्जा छे जे, ॥ पाप नही कोइ उत्सूत्र भाषण जिस्यो, धर्म नहीं कोई जगसत्र सरिखो. ।। आ महापुरुषना वचनथी पण, एमज मालम पडे छ के, जे दुनीयामां मोटामां मोडं पाप छे ते तो सर्व आचा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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