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________________ १३९ ने ते पुरुषोना, प्रथमना त्रण निक्षेपने, उपादेयपणे मानी, योग्यता प्रमाणे आदर पण करी रह्या छे. । वास्ते ते उपादेय वस्तुना त्रण निक्षेप निरर्थक नथी । ए तो पेली ढुंढनीनी, अने ढूंढक वाडीलालनी, मतिज, आ निक्षेपादिकना विचारमां निरर्थकरूपं निवडेली छे. आ अनुयोगद्वार सूत्रनो, विषयज महा गंभीर छे, ते परंपराना गुरु पाथी भण्या वगर, अने टीका भाष्यादिकनो आश्रय लीधा वगर, ढूंढनी, अने ढूंढक, ढूंढी ढूंढीने मरशे तो पण, पत्तो लागवानो नथी । केमके ते अनुयोगद्वार सूत्रमां अमारी उपादेयरूप नित्य क्रियाना, जे चार निक्षेप करवा मांडया छे, ते क्रियाना बोधने आपनारू सूत्र छे, अने प्रगटपणे बोध आपनार साधु छे, तना आश्र यने लइनेज, चार निक्षेपो कयी छे । अने ते वस्तुना चारे निक्षेपो, अमारा जैनोने उपादेय रूपेज छे. ॥ || मात्र विशेष एज छे के, ज्यां सुधी अमो ते आवश्यक क्रियाना, खरा अर्थने प्राप्त करी, तेमां लीन नही थइये, त्यां शुधी, जेवी रीते पूर्वकालमा ओघा अने मुहपत्तिओना, ढगला करता आव्या, तेवी रीते आ वखतना पण ओघा अने मुहपत्तिओ फोगटना भारभूत रूपेज छे, एम सर्व जीवोने ते भाव आवश्यकना पाठथी, बोध लेवानो छे । नहीं के प्रथमना त्रण निक्षेपने, अवस्तु कहीने फेंकी देवाना छे, ॥ ॥ जो तमो ते आवश्यक क्रियाना, त्रण निक्षेपने, सर्वथा प्रकारथी अवस्तु, अने उपयोग विनाना, निरर्थकरूपे, कडेवाने मागता होय तो, प्रथम तमारा ढूंढ़कोने, ओघा अने महपत्ति ओज, फेंकी देवी जोइये. । केमके आवश्यक क्रियाना भाव निक्षेपमां पण, नो आगमना, “ लोकोत्तरिक" नामना भेदमां, उठवा बेसवारूप क्रिया, ओघाना फिराना, विगरे सर्व क्रियान निषेधीने केवळ शुद्ध 46 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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