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________________ १२७ ज, बींजी क्रियाओ विगेरे पदार्थोंना, चार चार निक्षेपो करवानी, सूचना करली छे, परंतु अमारी नित्य क्रियारूप उपादेय आ वश्यकनी क्रियाथी, जूदा स्वरूपथीज फेंकी दाघेली छे, जेमके समुद्र, अपणी तरंगोनी छालमारी, कचराने अलग निकालतो जाय ? तेम ते रूपनी, अथवा ज्ञेयरूपनी, क्रियाओने काढीनांखेली ले, तेथी अमारी उपादेयरूप, छ आवश्यकनी नित्य क्रियाना, चार निक्षेपमां, भेलसेल करीसकायज नही. ।। अने ते वीजी क्रियाओना भेलसेलथी, आ आवश्यकना निक्षेपो कर्या छे एम पण कोइ दिन कही सकायज नहीं. हां विशेषमां एटल ले के. जेने ते बीजी क्रियाओना, चार निक्षेपो करवा होय, तेने एज सूत्रना पाठने लड़. जुदा रूपथी खुशीथी करे, तेनी मनाइ पण नथी. || 7 ॥ हवे जूबो के तेछ आवश्यकनो, १ नामनिक्षेप, अजीवादिक वस्तुमा करवानो को छे, तेवीरीते अमोए, सामायिक सूत्रनो नामनिक्षेप, पुस्तक, अने श्रावकना, आश्रयथी करीने बताव्यो छे, तेजप्रमाणे ते आवश्यक सूत्रनो पण, पुस्तक, अने साधुना, आश्रयधीज सिद्धांतकारे करीने बतावेलो ले, ॥ " || अने २ स्थापना निक्षेप पण, ते आवश्यक सूत्रनो, अक्षरोना आश्रयथी, अने साधुनी मूर्तिरूपथीज, करीने बतावेलो छे, ॥ || अने ३ द्रव्य निक्षेप पण, साधुना आश्रय पणार्थीज वर्णन करवा सिद्धांतकारे प्रवृत्ति करेली छे, परंतु तेमां आगम, नो आगमना, भेदो करतां, बीजी 'लोकिक,' अने 'कुप्रावचनीक, ' क्रियानो 'नो' आगमना, भेदयां प्रवेश थवानो संभवथवानो हतो, तेथी तेने उपादेय आवश्यक क्रियाथी, व्यतिरिक्तपणे 'नो' शब्दथी, सर्वथा मकारी निषेधी, जुदी फेकी दड़, त्रिजो 'लोकोत्तरना ' लोकोत्तरना नामधी अंश पणे उपादेय पणे राखी लीधो छे. ३ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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