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________________ ॥ अने ते लोकिकादिक सूत्रोमां, गोठवेला अक्षगेनी, अथवा 'लोकिक क्रियामा रहेला लोकोनी, अने परिव्राजकनी क्रियामा रहेला परित्राजकोनी, 'मूर्तियो' करावेली होय तो, तेमनी अवश्य क्रियानो,२ स्थापनानिक्षेप,पण एज सिद्धांतना पाठयी करी शकाय छे.२।। ॥ अने ते लोकिक आवश्यकनो, तेमज ते परिव्राजक आवश्यकनो, ३ ' द्रव्यनिक्षेप' पण एज सूत्रना पाठथी तेमना पुस्तकोमा करी शकाय छे, ते वास्ते ढूंढनी पावतीए, अने ढूंढक वाडीलाले, प्रथमना त्रण निक्षेप, अवस्तु अने उपयोग विना छ एम जे कयुं ते खोट कां ! मने तो ते ढूंढनीनु, अने ढूंढकर्नु,कहेवू योग्य लागे छे।। ॥ " इति पूर्वपक्ष" ॥ ॥ हवे ते श्रावकने उत्तर आपीये छीए. ॥ || अरे भाइ श्रावक-गणधर महाराजाओना, महागंभीर आशयथी, सूचनारूपे गूंथायेला, समुद्ररूप सूत्रना पाठने, तमो गुरुविनाना भणीने, तेमना आशयने समज्यावगर ! जेम कोइ पुरुष, समुद्रना भ्रमचक्रतुं स्थान जाण्यावगर, तेना भ्रमचक्रमां पडी, समुदना तळीये जइ बेसे, तेम तमो आ चार निक्षेपोना विषयमां, अधोगतिना विचारने प्राप्त थयेलाछो, अमो आटलोबधो खुलासो करता आव्या तोपण तमारी शंका दुर ना थइ, ते अमोने पण घj आश्चर्य जेवू लागे छे, खेर फरीथी पण तमारी शंकाना उद्धारमाटे, बे लीटीओ वधारे लखी बतावीये छे, ते सिद्धांतना पाठनी साथे मेळवीने विचारीजोशो.॥ ॥ आ अनुयोगद्वार सूत्र, गूंथन करतां, गणधर महाराजाओए! सर्व वस्तुना चार निक्षेपोना विषयने, मनमां धारणकरी, प्रथम जे अमारे नित्य उपादेयरूप, छ आवश्यकनी क्रिया छे, तेना उद्देशथी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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