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जोइये छीए, तो पछी ' स्थापना निक्षेप,' अवस्तु, अने उपयागे विनानो, आ लोकमां छे एम केम कहीने बताव्यो ! ज्यारे ज्ञेयरूप पदार्थनो स्थापना निक्षेप, अवस्तुरूप, अने उपयोग विनानो छे, एम नथी कही शकातुं तो पछी, अमारा परमपूज्य, तीर्थकर भगवान् के, जेना नाम निक्षेपना उच्चारण मात्रथी, अमारा पापनो प्रलय मानीये छीए, तेमना स्थापना निक्षेपने, अवस्तु, अने उपयोग विनानो छे, एम केहवावाला, वीतरागदेवना मार्गावलंबी छे, एम केवी रीते कही शकाशे ! वास्ते उपादेयरूप तीर्थंकर भगवाननो, स्थापना निक्षेप उपादेयरूपज छे, परंतु अवस्तुरूपनो के, उपयोग विनानो नथी, ए तो तमारा ढूंढकोने, मूढता थयला छे तेथी, बधु विपरीतपणाथी उलटपणे जूओछो. ।। ___ आ निक्षेपोना विषयमा विशेष समजवानुं पण ए छे के, १ ' हेय ' पदार्थना चारो निक्षेप, हेयपणे होय छे, एटले त्यागवा लायक होय छे. । अने २ ' ज्ञेय ' पदार्थना चारो निक्षेप, ज्ञेयपणे होय छे, एटले जाणवा लायक होय छे.। अने ' ३ उपादेय' पदार्थना चारो निक्षेप, उपादेयरूपज होय छे एटले योग्यता प्रमाणे आदर करवाने योग्यज होय छे.
एमां पण बीजुं विशेषपणुं ए छे के, जेवी रीते १ हेय, २ ज्ञेय, अने ३ उपादेय, रूपे पदार्थो, दुनियामां त्रण प्रकारना छे, तेवीज रीते, एकज पदार्थने, १ हेय, २ ज्ञेय, अने ३ उपादेयपणे, मान आपनारा लोको पण, त्रण प्रकारमांज वहेंचाइ जाय छे.
उदाहरण-जेमके वीतराग दशाने प्राप्त थयेला तीर्थकर महाराजाओ, सर्वथा प्रकारथी उपादेय रूपेज छे, अने तेमनी सेवा भक्ति करवाथी, अने तेमनाज वचन, पालन करवाथी, अमारा संसारनो निस्तार थशे, अने आ भव तेमज परभवनां सर्व संकट
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