SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०९ इति प्रथमनो लेख. ॥ वाचक वर्ग । वाडीलाल शाहना आ लेखथी, आ एमज समज्या हशो के, तीर्थकर महाराज ' उपादेय ' तरीके तो छेज, अने तेमना 'त्रण निक्षेप ' पण ' उपादेय ' तरीके मानवामा हरकत नही, मात्र ' स्थापना निक्षेप ' ज उपादेय तरीके कबुल राखतां, अमारा ढूंढकभाईना पेटमां, गरबडाट थइ पडेलो छे, तेथीज एम लख्युं छे के स्थापना निक्षेप ' उपादेय ' तरीके कबुल राखनारा ठगाय छे. ॥ ॥ आगे पृष्ट. ६४ मां नो तेमनो बीजो लेख || ॥ २ श्री ‘अनुयोगद्वार, सूत्रमा कयुं छे के, पेहेला त्रण 'निक्षेप'' अवथ्थु' एटले उपयोग विनाना छे, छेल्लो चोथोज, आलोकमां उपयोगी, अने परमार्थमां साधनरूप छे.॥ इति द्वितीय लेख ॥ ॥ वाडीलाल शाहना आ लेखथी एम पण सिद्ध थाय छे के, वस्तुना चार निक्षेप थाय छे पण तेना 'त्रण निक्षेप ' स्वरूप विनाना होवाथी कांइ पण उपयोगना नथी.॥ ॥ आगे जूवो पृष्ट. ७८ नो त्रिजो लेख ।। ॥ ३ शब्दनय, समभिरूढ नय, अने एवंभूत नय, ए त्रण नयवाला माणस 'नाम' स्थापना, अने 'द्रव्य' ए त्रण निक्षेपने ' अवथ्थु ' (अवस्तु) माने छे, ३ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy