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________________ १०५ न वर्णवेलो छे, तेथी भ्रांतिमां पडी समज्या वगर आचार्योने दूषित करवा मंडी पडवू ए विचारशक्ति पामेलानुं कार्य न गणाय. । अने भाव आवश्यकमां, लोकिक, अने कुमावनिक छे, ते तो शब्दना अर्थथीज भिन्नरूपे छ तो पछी तेमां समजावत्रानी पण कांइ जरूर रहेती नथी. वास्ते वीतरागदेवनी स्थापनारूप मूर्ति तेमनाज संबंधी होवाथी, अने तेमनीज यादगिरी आपवावाली होबाथी, भक्तजनोने तो सदा पूज्यरूपज छे. । अने जे अज्ञान दशाना वशथी, चित्तमां मूढता धारण करी, वीतराग संबंधी मूर्तिने, पथ्थर कही अवज्ञा करे छे, तेओनां तो चित्तन पथ्थररूप बनी गयेला छे, एम अमो मानीये छीये. ।। इति चोथा भावनिक्षेपनो तत्त्वाऽतत्त्व विचार संपूर्ण ॥ ॥ हवे जूवो सूत्रना चार निक्षेपनो तत्त्वाऽतत्त्व विचार.॥ आ सम्यक ग्रंथनी रचना करनार वाडीलाल शाहे, जे सूत्रना चार निक्षेप लख्या छे, ते चार निक्षेपमांथी एक पण निक्षेपनो लेख सामान्य प्रकारथी पण योग्य रीते करेलो नथी, केमके सूत्रना निक्षेप पण आवश्यक सूचना जेटला, अने तेज प्रमाणे सूत्र. कारे करीने बतावेला छे, परंतु किंचित् मात्रनो फरक बतावेलो नथी, मात्र फरक जे छे ते द्रव्यसूत्रना व्यतिरिक्तमा “पत्तय पोत्थय लिहिअं"एम जे लखेलुं छे ते पण, सूत्रना निक्षेपनी मुख्यतारूपने छोडीने भावना कारणनी विवक्षाथी ग्रहण करेलुं छे. ते सिवाय अनेक प्रकारनां रूं ( अर्थात् कपास ) आदि बताव्यां छे, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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