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भेदोनो तात्पर्य आगम, नो आगमना भेदथी विचार ए छे के, जे आगमथी भाव आवश्यक छे ते ए छे के, जे उपयोग विना भणवावालो साधु हतो तेने द्रव्य आवश्यक कह्यो हतो, अने तेज साधु जे वखते उपयोगना घरमा आव्यो ते वखते तेने, आगमथी ( अर्थात् सिद्धांत रूपथी) भावपणे मानी लीधो. || अने ना आगमधी लोकिक, कुमावचनिक, अने लोकोत्तरिक, एम त्रण भेदधी भाव आवश्यक कहेलो छे. । तमां लोकिक भाव आवश्यक ए छे के, सवारना वखते, अने संध्या वखते, भारत, अने रामायणादिकना श्रवण करवावाला कहेला छे। अने कुप्रावचनिक, भाव आवश्यकमां चकादिक साधुओना होम, हवन, मंत्र जापादिक, वर्णवेला छे। अने लोकोतरिक, नो आगमी भाव आवश्यक शुद्ध उच्चारणपूर्वक उपयोग सहित शुद्ध श्रद्धावाला श्रावकनी अने शुद्ध साधुओनी वे वखतती प्रतिक्रमणरूप षट् आवश्यकनी क्रिया बतावी छे. अही पट् आवश्यकरूप सूत्र छे तेने, आगमरूपथी ग्रहण करेलुं छे, अने तेमां उठ बेस विगरे क्रियाओ छे तेने जडरूप मानी नो शब्दयी देशपणे निषेध रूपे बतावी छे। अने जे आगमरूपथी भाव आवश्यक को तो मां क्रियानी विवक्षा छोडी दइ मात्र आवश्यक सुत्रना अर्थरूप भावनेज ग्रहण करेलो हतो, वास्ते आगमथी भाव आवश्यक छे ते उत्तम अने यथा वत् रूपथी छे, अने लोकोतरिक, नो आगमी भाव आवश्यक छे ते पण परम उपादेय तरी - केज छे, जेवी रीते ए भाव आवश्यक उपादेय तरीके छे, तेवीज रीते भाव आवश्यकना खाम पणाना संबंधवालो, नाम निक्षेप, स्थापना निक्षेप, अने द्रव्य निक्षेप, पण परम उपादेय छे, परंतु निरर्थक रूपे नथी । अनं जे व्यतिरिक्त पणे लोकिक, कु प्रावचनिक, अने लोत्तरिक, नो आगमथी द्रव्य आवश्यक वर्णन करेलो छे, ते उपादेय रूपे नथी, केमके भाव आवश्यकता स्वरूपथी तेने भिन्नपणे
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