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________________ वास्ते ए बे वस्तुमा खासपणे भाव आवश्यकनोज संबंध जोडीने बतावेलो छे. ॥ हवे, लोकिक, कुमावनिक, अने लोकोत्तरिक, आ त्रण भेद छ, ते, खास उपादेय, आवश्यकना संबंधथी व्यतिरिक्तपणे (अर्थात् भिन्नपणे) करी बतावे छे, तेमां जे प्रथम लोकिक भेद छे,तेतो लोकोनी दंतधावनादिक जे जे अवश्य क्रियाओ छे तेनेज जणावे छे. । तेथी तेमां, आगमरूप आवश्यकनो संबंध सर्वथा प्रकारथी नथी. अने जे कुप्रावचनिक छे तेमां, चरकादिक साधुओ ने, अवश्यपणे यक्षादिकना पूजन करवा वाळा बताव्या छे, तेथी षट् अध्ययनरूप आवश्यकथी भिन्नज छे, हवे त्रिजो लोकोत्तरिक द्रव्य आवश्यक छ, तेथी भ्रांति थाय छे के, ते भाव आवश्यकनो संबंध होवो जोइये पण, आ लोकोत्तरिक द्रव्य आवश्यकना करवा वाळा स्वछंदचारी, गुरुथी, अने सिद्धांतथी परां मुख थयेला, साधु नाम धारी, तमारा ढुढकादिक जेवा लोक रंजन वास्ते, बे वखत आवश्यकना करवावाळा कहेला छे, तेथी नो शब्दे मात्र सूत्ररूपनेज ग्रहण करेलुं छे, तेथी ते सूत्र लोकोत्तररूप होवाथी, भाव आवश्यकथा व्यतिरिक्तपणे, लोकोत्तरना शब्द रूपथी ग्रहण करेलुं छे पण, भाव आवश्यक सूत्रपणाथी व्यतिरिक्तपणे ग्रहण करेलु छे. । अने जाणग सरीर, भविय सरीररूप, प्रथमना ये भेदमा ‘भाव आवश्यकरूप' उपादेय वस्तुना आरोपपणाथी ग्रहण करेलुं छे, तेथी ते व्यतिरिक्तना विजा भेदथी भ्रांति करवाने जग्या नथी. । जेम कोइ अन्यमतावलंबी श्रद्धाविनानो पोपटनी परे पाठ भणीने बतावे, नेवी रीते ते स्वछंद चारी साधुओना, आवश्यकने द्रव्यथी व्यतिरिक्तपणे गणीने ले.कोत्तरना भेदमां दाखल करेलुं छे, परंतु उपादेयरूप जाणग सरीर, अने भविय सरीरना आवश्यकने तुछरूपे मानेलो नथी. ३ । हव जवो ४ था भाव आवश्यकना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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