SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हवे चोथा भावनिक्षेप विषये तत्त्वाऽतत्त्वनो विचार करीये छीये. ॥ वाडीलाल, लखे छे के, ४ भावनिक्षेप-केवल ज्ञानादिक सहित जे वर्ते छे ते ‘भाव अरिहंत ' खरेखरा अरिहंत तो तेज, अने वंदनीक पण तेज, वाकी तो नामनो, माणस के, पथ्थर, कोइनुं कल्याण करी शके नहि. ____ आ चोथा 'भावनिक्षेपथी ' विचार करवानो ए छे केकेवल ज्ञानादिक सहित वर्ते ते खरे खरा अरिहंत छ. एम तो अमो पण मानीये छीये. । अने अरिहंतना चार निक्षेपमांथी एक चोथो भावनिक्षेप, अरिहंतमांज, दाखल थयेलो छे, एम पण मानीये छीये, । अने अरिहंतना बीजा त्रण निक्षेप छे तेने पण चोथा भाव अरिहंतना निक्षेपनी पेरें अरिहंतनी साथेज संबंध करीये, तोज अरिहंतना चार निक्षेप, यथा योग्यपणे थया गणीये छीये. । परंतु निक्षेप तो करवा मांडया अरिहंतना, अने आ चोथा भावनि. क्षेपनी परे, वीजा त्रण निक्षेपो अरिहंतनो संबंध, न धरावता होय तो ते, विपरीत लेख थयेलो छे, एम पण समजीये छीये. आ अमारा ढूंढक भाइए प्रथम चार निक्षेप अरिहंत शब्द उपर लागु पाडवाना कही, प्रथमनो नाम निक्षेप, तीर्थकरथी बीजी वस्तु साथे, जोडवानो बताव्यो, ॥ तेमज द्रव्यनिक्षेप , चक्रवर्ती आदि बीजी वस्तुमा जोडीने बताव्यो. ॥ अने सत्यार्थ चं. द्रोदयमां, प्रथमज ढूंढनी " पार्वती” लखे छे के,-श्री अनुयोगद्वार सूत्रमें, आदिहीमें, वस्तुके स्वरूपके समजनेके लिए, वस्तुके, सामान्य प्रकारसे, चार निक्षेपे निक्षेपने ( करने ) क Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy