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चौलुक्य पत्रिका ]
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उत्तर कोकणके शिल्हराओं के वर्तमान कोलाबा और थाना जिलाके विविध स्थानोंसे शक ७५० से ११८२ के मध्यवर्ती निम्न ताम्र शासन और शिलालेख प्राप्त हुए
हैं ।
१ - श्री स्थानक ( वर्तमान थाना ) े प्रसिद्ध पटषष्टि (शालिशेट) द्वीपके कृष्णगिरी (कन्हेरी)
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की गुफा संख्या ७८ का पुलशक्ति हे
राज्यकालीन विना संवत्का शिलालेख । २ – उक्त कृष्णगिरीका गुफा संख्या १० और ७८ में उत्कीर्ण शक ७७५ और ७६६
वाला कापदि द्वितीयका शिलालेख ।
३- अपराजितका शक ९९९ वाला शासन पत्र, जो थाना जिला के भीवंडी तालुकाके मदन नामक स्थान से प्राप्त हुआ था ।
४- धानासे प्राप्त अरिकेसरीका शासन पत्र संवत ६३६ का ।
५- चितिराजका शक ९७८ वाला शासन पत्र |
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६- मुममुनिका शक ९८२ ७ - अनंतपालका शक १००३ और १०१८ वाले दो शासन पत्र | ८ - अपरादित्यका शक १०६० वाला शिला लेख ।
९ - हरिपालदेवका शक १०७०-१०७१ और १०७५ वाले तीन लेख । १० - मल्लिकार्जुनका चिपलूनवाला शक १०७८ और वेसीनवाला शक १०८२ का दो लेख । ११ - अपरादित्य द्वितीयका शक ११०६ और ११०९ वाले दो लेख ।
१२- सोमेश्वरका शक ११७१ और १९८२ वाले दो लेख ।
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इसके अतिरिक्त इनका राष्ट्रकूटोंके लेखोमें प्रसंगानुसार उल्लेख पाया जाता है, पुनश्च वातापि कल्याण और पाटनके इतिहासमें इनका संबंध दृष्टिगोचर होता है। इन शासन पत्रों और शिलालेखोंके पर्यालोचनसे प्रकट होता है कि शिल्हरा शब्दका पर्याय शिलहार-शैलहारशिलार और श्रीलार आदि है । एवं इनका जातीय विरुद " तगर पुराधीश्वर था । जिससे प्रकट होता है कि इनके पूर्वजोंकी राजधानी तगरपूरमें थी । क्योंकि हम कदम्बोंको " वनवासी पुराधीश्वर" यादवोंगे " द्वारावती पुराधीश्वर" और उत्तरकालीन चौलुक्योंके पुराधीश्वर" विरुदको धारण करते पाते हैं। जो स्पष्टरूपेण उनके पूर्वजों की राजधानीका शापक । पुनध प्रकट होता है कि इनका अधिकार वर्तमान कोलावा और थाना जिल्लाओंके भूभाग
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कल्याण
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