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[प्राक्कथन है। इस अवधिमें मान्यखेटके राष्ट्रकूट सिंहासनपर आठ राजा बैठे। इन राजाओंका समावेश चार वंश श्रेणीमें है । और इनकी वंशावली निम्न प्रकारसे होती है।
अकाल वर्ष कृष्ण
जग तुङ्ग
इन्द्र रा ज (तृतीय)
दिग
अमो घ वर्षे
गोविंद राज कृष्ण
खो टिग
निरुपम
ककल
(क के राज) इनके इतिहासके परिचायक इनके अनेक शासन पत्र हैं। कृष्ण अकालवर्षके पौत्र इन्द्रराजके नवसारीसे प्राप्त शक ८३६ के दो लेख और उस (कृष्ण) के सामन्त प्रचण्डका कपडवंजसे प्राप्त शक ८३२ का तीसरा लेख है। इन शासन पत्रोंके पर्यालोचनसे ज्ञात होता हैकि अकाल वर्ष कृष्णने संभवतः शक ८३२ में गुजरातके राष्ट्रकूट ( शाखा ) वंशका नाश संपादन किया था । उक्त युद्ध में उसके शिल्हारवंशी सामंत तथा प्रचण्ड नामक सेनापतिने पूर्व शौर्य दिखाया था । कृष्ण अकाल वर्षके बाद उसका पुत्र इंद्र तृतीय गद्दी पर बैठा। इसके समय लाट और गुजरातका संबंध अक्षुण्ण रूपसे पाया जाता है, इंद्रराजके पश्चात् लाट गुजरातके साथ इनका सम्बंध पाया नहीं जाता, इसका कुछभी परिचय नहीं मिलता। परंतु शिल्हारों के खारेपाटनवाले लेखसे प्रगट होता है कि ये राष्ट्रकूटोंको अपना अधिराज कहते थे अनंतर हम एक वयक शक ६०० के आसपासमें चौलुक्यराज तैलपदेवके सेनापति वारणको पाते हैं। शिल्हार राजवंश
हमारे विवेचनीय ऐतिहासिक काल तथा देशके साथ स्थानकके शिल्हारओंका संबंध है। अतः हमारी समझमें इनके अधिकार और इतिहास पर कुछ प्रकाश डालना भावश्यक प्रतीत होता है। इस हेतु निम्न भागमें सूक्ष्म रूपसे कुछ प्रकाश डालनेका प्रयत्न करते हैं। अद्यावधि
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