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चौलुक्य चंद्रिका] होते तो हमें इस वंशका कुछभी परिचय नहीं मिलता। प्रायः देखनेमें आता है कि राजवंशोके अपने शासन पत्रोमें केवल राज्यः सिंहासनपर बैठनेवालोंकाही परिचय दिया जाता है। उनके भाई भतीजोंका नामोल्लेखभी नहीं किया जाता । गादीपर बैठनेवालोंके भाई भतीजोंका परिचय उनके किये हुए अपने दान पत्रादिमें मिलता है। जो वे अपनी जागीरके गावों में से यदा कदा ब्राह्मणादिको दान देनेके उपलक्षमें प्रचारित करते हैं। अतः जयसिंहका परिचय वातापिके शासनपत्रों में नहीं मिलना कोई आश्चर्यकी बात नहीं है।
___ वातापिके शासन पत्रादि केवल जयसिंह के संबंधही मौन नहीं है, वरन उसके अन्य दो बड़े भाई आदित्यवर्मा और चंद्रादित्यके संबंधमी वे समान रुपेण मौन है। यदि आदित्यवर्माका स्वयं अपना और चंद्रादित्यकी राणी विजयभट्टारिका महादेवी के शासन पत्र न मिले होते तो न तो उन दोनोंका परिचय मिलता और न पुलकेशी द्वितीय तथा विक्रमादित्य प्रथमके मध्यवर्ती अवकाशका संतोषजनक रीत्या समाधान होता।
जयसिंह तथा नवसारिकाके चौलुक्यवंशका परिचायक अद्यावधि, हमें जयसिंहके पुत्र और पौत्रों के ५ लेख मिले हैं। इन लेखोंका संग्रह और अनुवाद तथा पूर्ण विवेचन " चौलुक्य चंद्रिका लाट खण्ड' में अभिगुन्ठित है। इन कथित ५ लेखोमें से जयसिंह के ज्येष्ठ पुत्र युवराज शिलादित्यके दो, 'द्वितीय पुत्र तथा उत्तराधिकारी मंगलराजके एक, तृतीय पुष बुद्धव के पुत्र विजयराजको एक और चतुर्थ पुत्र पुलकेशीका एक है।
इन लेखोंमेंसे युवराज शिलादित्य के प्रथम लेखमें जयसिंहका अपने बड़े भाई विक्रमादित्यकी कृपासे राज्य प्राप्त करनेका म्पध्र उल्लेख किया गया है। और द्वितीय लेनमें, बातापि पति विक्रमादित्य प्रथमके पुत्र विनयादित्यको अधिराज रूपसे स्वीकार किया गया है। इन दोनों लेिको मात्रा अल्या तीमा लेखों में अन्तर केवल इतनही है कि इसमे वातापिके तत्कालीन राजाको अधिराजापोगन्दीका किया मया है परन्तु उत्तर यी तीन लेलोंमें वातापिली संशावलीको साकासय मात्र चार्जित कियावाया है। लेखी पर्यालोचनले निकाका बंशावपलमाहोतो हैमी 31h Sri
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