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पुनश्च इन शासन पत्रोंसे प्रगट होता है कि इनको राज्यधानी नवसारी में थी। और इनके अधिकार में दमनगंगासे लेकर नर्मदाके बाम भाग अवस्थित भूभाग निधान्त रूपेण था । और संभवतः इनके राज्य की पूर्वीय सोमापर खानदेश था। इनकी आग्नेय सीमा नासिकके प्रति घुसती थी। जयसिंहके ज्येष्ठ पुत्र युवराज शिलादित्यकी मृत्यु पिताकी जीवित अवस्थामेहीं हुई थी। अतः जयसिंहका उत्तराधिकारी उसका द्वितीय पुत्र मंगलराज हुआ। मंगलराज के पहिलेही बुद्धवांकी मृत्यु हुई प्रतीत होती है। मंगलराजभी निःसंतान मरा। अतः उसका उत्तराधिकारी पुलकेशी हुआ । मंगलराजके उत्तराधिकारी पुलकेशीके राज्यकालम अरबोंने भारत पर आक्रमण किया था और लूटपाट मचाते हुए भरूच तक चले आये थे। जव उन्होंने दक्षिणापथ अर्थात वातापिराज पर आक्रमण करनेके विचारसे आगे पांव बढाया तो पुलकेशीने उन्हे कमलेज के पास पराभूत कर पीछे भगाया। पुलकेशीके पश्चात् इस वंशका कुछभी परिचय नहीं मिलता । संभवतः वातापि छोननेवाले राष्ट्रकूटोंने इस वंशका नाश किया । लाट के राष्ट्रकूट।
जिस प्रकार लाट वसुन्धराके साथ चौलुक्योका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्षात्मक दो प्रकारसे सम्बन्ध है उसी प्रकार राष्ट्रकूटोंका सम्बन्ध है। लाट देशके साथ राष्ट्रकूटोंके अप्रत्यक्ष सम्बन्धके परिचय सम्बन्ध में हमें दक्षिणापथके इतिहासका पर्यालोचन करना होगा । दक्षिणापथके इतिहाससे प्रकट होता है कि मान्यखेटके राष्ट्रकूटोंका प्रताप शीघ्रताके साथ बढ रहा था। मान्यखेटके राष्ट्रकूट दन्तिदुर्ग के इलोरा गुफाके दशावतार मन्दिरमें उत्कीर्ण ६७२ वाले लेखसे प्रकट होता है
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