________________ बौद्धस्य चन्द्रिका / 176 चौलमय चंद्रिका के अन्यान्य खण्डों में क्या है ऐजन्त बातापि:- इस खण्डमें चौलुक्य चक्रवर्ती पुलकेशी तथा उसके पूर्वज एवं वंशजों के विक्रम संवत 16 से लेकर 735 पर्यन्त शासनपत्रों का संग्रह है। इन शासनपत्रोका अनुवाद और वैज्ञानिक विवेचन किण गया है। विवेचन में तत्कालीन अमान्य राज्यवंशों के सामयिक लेखोंका सब से मस्येक बेस की बधार्थता प्रभृति सिद्ध की गई है। प्रसंगवाश पाश्चात्य विद्वानों और उनके अनुयायी भारतीयोंकी समीक्षा पूर्णरूपेवकी वातापी-कल्यायः- इस खण्ड में ऐजन्त वातापीके अन्तिम राजा कीर्तिवमाके हाथसे राज्य उम्मीका अपहरण राष्ट्रकूटों द्वारा होने के पश्चात उसके भ्रतृपुत्रके वंशजोंने किस प्रकार लगभग 150 वर्ष पर्यन्त चौलु य राज्यचिन्ह की रक्षा करते हुए युद्ध किया था और अन्त में विजयी हो वातापीको हस्तगत कर राज्यलक्ष्मीका उद्धार किया था / एवं वातापी छोर कल्याण को राजधानी बना पातापी कल्यायके चौक्य कहलाने वाले चौलुक्यों के वंशमें विक्रम 735 पश्चात 1200 पर्यात होनेवाले राजाओंके शासनपत्रोंका संग्रह, अनुवाद तथा विवेचन किया गया है। बेंगी-चोल:- इस खण्ड में पंवन्त बातापीके भारत चक्रवर्ती चौलुक्य राज पुलकेशीके बातृवंसज बगभग 30 पीढ़ी विक्रम 5 से 14 पर्यन्त राज्य करनेवाले राजानों के, शासमपत्रों का संग्रह, अनुवाद तथा विवेचन है / ये सब चोख को अधिकृत कर अपने राज्यमें मिला लिए सबसे बगीचोखो चौलुक्य नामसे प्रख्यात हुए / एवं पंच द्राविड इनके अधिकार में होने के कारण इनका चौलुभवसे सोलुक पड़ा और संभवतः इनके वंशज जब गुजरात में गए तो अपने साप चौलुक्यके स्थान में सोलुकको नेते गये, जो कलान्तर में सोलंकी बन गया। भानत पाटण-धोलका चौलुक्या- मानत (गुजरात) पाटनके चापोरकट राजवंशका उत्पाटन कर मूबराजने चौलुक्य वंशके राज्यका सूत्रपात किया था। इस वंशने विक्रम संवत 1018 से 1218 पर्यन्त गुजरात वसुन्धराका भोग किया। इस अवधिमें इस वंशके दस राजामोंने शासन किया था। इस वंशमें सिद्धराज जवसिंह नामक राजा बबाही प्रसिदमा है। उसका नाम गुजरात के आवास वृद्ध की जिहा पर अंकित है उसका नाम प्रत्येक गुजराती साभिमान लेता है / इस वंश का अन्तिम राजा भीम द्वीतीय था / इसके हाथ से धोलकाके बलों ने राज्यवक्ष्मी का अपहरण किया / बोडों का मूल पुरुष बराज का पाटय के चौबुझ्यों के साथ वीपक्षीय कुछ सम्बगया। बारजम्यान पाती नामक स्थान में रहता था। क्रमशः इसके वंशज पाटण के चौतुल्यों के राज्य में सर्वोसी बम गए थे। इस वंश का शासनकाल 126 से 1350 पर्यन्त साब है। इसी वंश के चार राजाओं ने इस अवधि में शासन किया था। प्रथम राजा वीरधवल और अन्तिम कर्षनेता हैं। इन्हीं दोनों वंश के विक्रम संवत् 1017 से लकर 1360 पर्यन्त 310 वर्ष काबीन प्रायः प्रत्येक रामानों के शासन पत्रों और प्रशस्तियों का संग्रह और विवेचन है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com