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[ लाट नन्दिपुर खण्ड
के चरित्र और नीति में अधिकांशतः समानता पाई जाती है। जिस प्रकार औरंगजेब अपने बडे और छोटे भाईओं का नाश कर अपने रक्त रंजित हाथों से दीन इस्लामकी रक्षा के लिये दिल्ली के सिंहासन पर बैठा था और पचास वर्ष राज्य किया था । और उसने अन्तिम समय अपने साम्राज्य को छिन्न भिन्न होता हुआ देख रक्त की आंशू बहाता अपने इहलीलाका संस्मरण किया था । उसी प्रकार विक्रमादित्य अपने बडे भाई सोमेश्वरको राज्यसे वंचित कर उसके रक्तसे अपने हाथोंको रंजित कर चौलुक्य सामाज्य के सिंहासन पर बैठा और ५० वर्ष राज्य कर अन्त में साम्राज्य भवनको शत्रुओंके आघात से भीरता हुआ देख अपनी आखों से रक्त की आंशू बहाता मरा था।
एवं जिस प्रकार औरंगजेबने बन्धु नाशजन्य पापाग्नि से मुगल साम्राज्यको भस्मात कर उसके मूल को नष्ट कर दिया था, और उसकी मृत्यु पश्चात मुगल साम्राज्य का एक प्रकार से अन्त हो कर नाम मात्र के सम्राट उसके वंशज रह गये थे । एवं कुछ दिनों अर्थात ५०- ६० वर्ष के बाद नाम मात्रका मुगल साम्राज्य भी नष्ट हुआ । अन्त में अन्तिम बादशाह शाहआलमको अपने मकान में बन्दी होना पडा था। उसी प्रकार विक्रमादित्य की मुत्यु पश्चात ५- ६० के भीतर ही बन्धु नाश जन्य पापानि से दग्ध चौलुक्य साम्राज्य नष्टप्राय हुआ और उसके बृद्ध प्रपौत्र सोमेश्वरको अपने सामन्त का बन्दी हो कर अन्त में इधर उधर भटकते हुए चौलुक्य साम्राज्य सूर्य के साथ सदा के लिये भरत होना पडा ।
अन्ततोगत्वा जिस प्रकार दारा को राजच्युत करने के लिये औरंगजेबने सापरा (उजैन) युद्ध के पूर्व मुरादको शाहशाह दिल्ली बनानेका का प्रलोभन दे अपना साथी बनाया और दारा के परास्त होने पश्चात मुरादको बन्दी बना ग्वालियर के दूर्गमें स्थान दिया था, उसी प्रकार विक्रमादित्य जथसिंहको चौलुक्य साम्राज्य भावी युवराज मान अपना साथी बनाया। और जब सोमेश्वरको राज्यच्युत कर स्वयं गद्दीपर बैठा तो कुछ दिनोके पश्चात जयसिंहको चौलुक्यराज देने के स्थान में वनवासी प्रदेशके साथ ही उसके पिता और भ्राता सोमेश्वर के समय प्राप्त अन्यान्य प्रान्तों से भी वंचित किया ।
मुराद और जयसिंह के चरित्र में इतनाही अन्तर है कि मुरादको मद्यप होने के कारण यासही बन्दी बनना पड़ा परन्तु जयसिंह वीर प्रकृति होने के कारण विक्रमके उदेश्यको जानते आगे बढ उसके छक्के छुडा अन्तमें राज्यच्युत हुआ । जयसिंहका विक्रमसे छक्के छुडानेका परिचय बिल्हण लेखमेही मिलता है । जयसिंहके सहन्न गुण शौर्य आदिको बिल्हणने अति ge बनाकर लिखा होगा । किन्तु सत्य छिपानेसे नहीं छिपता । विल्हरणके लेखका पर्यालोचन जयसिंहके शौर्यका दिग्दर्शन कराहीं देता है ।
विल्हरणके उधृत अवतरणसे प्रकट होता हैकि विरनोलव जयसिंहका अपने भ्राता विक्रम द्वारा पराभूत होकर बनवासी राज्यसे हाथ धोना पडा था। परन्तु यह ज्ञात नहीं हुआ कि विक्रमादित्य और विजयसिंह के पिता वीरनोलंब त्र्यलोक्यमल्ल जयसिंहके मध्य कब युद्ध हुआ। परंतु इतना तो
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