________________
चौलुक्य चंद्रिका ]
११८
निर्मल चरित्र प्रकट करनेके उद्देश्य से लिखा है कि सोमेश्वरको गद्दी परसे उतारने बाद भी विक्रम उसे गद्दी पर बैठाना चाहता था । परन्तु भगवान शंकरने प्रकट होकर क्रोध के साथ प्रकट किया कि वह स्वयं राजा बने। इसके अतिरिक्त सोमेश्वरको प्रजा पीडक आदि बताया है।
परन्तु जयसिंह के शक १००१ वाली प्रशस्ति के विवेचनमें तथा सोमेश्वर और विक्रम के संबंध को लेकर चौलुक्य चंद्रिका वातापि कल्याण खण्ड में विल्हणका भण्डा फोड़ करते हुए दिखा चुके हैं कि विक्रम अपने पिता की मृत्यु समय से ही सोमेश्वर को गद्दी परसे उतारनेकी धुन में लगा था और सर्व प्रथम उसने सोमेश्वर के प्रधान सेनापति कदमवंशी जयकेशी के साथ अपनी कन्याका विवाह कर उसे अपना मित्र बनाया । एवं उसके द्वारा राजेन्द्र चोड जो चौलुक्यों का वंश गत शत्रु था, के साथ षडयंत्र रच उसे चौलुक्य राज्य पर आक्रमण करने को उत्साहित किया । एवं जब सोमेश्वर राजेन्द्र चौल के साथ युद्ध करनेको आगे बढ़ा और जयकेशी विक्रमादित्य और जयसिंह तथा अन्यान्य सामन्त सेनापतियों को अपनी सेनाके साथ रणक्षेत्रमें आनेको आवाहन किया तो जयकेशी अपनी राज्यधानी गोश्रासे, विक्रमादित्य अपनी राज्यधानी वनवासी से और जयसिंह अपनी राज्यधानी से तथा अन्यान्य सामन्त और सेनापति अपनी सेना के साथ चोलदेश के प्रति अग्रसर हुए। परन्तु दोनों सेनाओं के रणक्षेत्र में आतेहीं जयकेशी और विक्रमादित्य सोमेश्वरका साथ छोडकर राजेन्द्र चौलसे मिल गये जिसका परिणाम यह हुआ कि सोमेश्वरको भागना पडा और रटबाड़ी प्रदेश राजेन्द्र चौलने अपने राजमे मिला लिया किन्तु विक्रम के साथ अपनी कन्याका विवाह कर दहेजमें रटवाडी प्रदेश उसे दिया । यदि जयसिंह उस समय सोमेश्वरकी रक्षा न करता तो कदाचित उसे उसी समय चौलुक्य राज और अपने प्राणसे हाथ धोना पडता । पुनश्च हम यहभी दिखा चुके हैं कि विक्रमादित्य ने सेवरण देशके यादव राजा से भी मैत्री स्थापित कर लिया था । एवं जयसिंहको वनबासी का युवराज और चौलुक्य राज का लोभ दिखा अपना साथी बनाया ।
भला जो मनुष्य अपने बंशशत्रु से मिल सकता है, अपने भाईको घोर युद्ध संकटमें छोड सकता है । उसके सेनापतिको बेटी दे कर मिला सकता है। सामन्तों को बडे बडे प्रान्त देकर बडे भाई के विरुद्ध खडा कर सकता है, बड़े भाईका राजच्युत कर उसका नामो निशान मिटा सकता है और लोभमें पड धर्माधर्म का विचार छोड सकता है, वह विल्हण पंण्डित जैसे कविओं कि दृष्टिमें अवश्य भातृ वात्सल्य हो सकता है । परन्तु हमारे ऐसे तुच्छ बुद्धियोंकी दृष्टिमें उसका भातृ वात्सल्य संसारमें अद्वितीय है । उसकी भ्रातृ वत्सलता पौराणिक युग भगवान राम के अनुज भरत और लक्ष्मण तथा ऐतिहासिक युगवाले शिशोदिया बंशी मोकल और भीमकी भातृ वत्सलताको पटतर करती है। यदि उसका देदीप्यमान उज्वल उपमान संसारके इतिहास में कहीं उपलब्ध है, तो वह मुगल साम्राट शाहजहांके पुत्र औरंगजेब का भ्रातृ प्रेम है ।
पुनश्च यदि हम यह कहें कि विक्रमादित्य अपने से वर्ष ५८२ वर्ष पश्चात होनेवाले मुगल सम्राट शाहजहां के बन्धुघाती पुत्र औरंगजेबकी आत्मा था तो अत्युक्ति न होगी। क्योंकि दोनों
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com