________________
चौखुक्य चंद्रिका] संबंधी के हाथसे पुनः प्राप्त करने में विक्रमादित्य और जयसिंह कि परस्पर विग्रह और जयसिंह के पराभव से सहायता मिली हो । चाहेजो हो परन्तु हमारी समझ में जयसिह ने लाट और दाहल विजय समय स्थानक के शिलहार अनन्तदेवको गद्दीसे उतारकर उसके किसी संबंधी को गद्दीपर बैठाया था। और इन दोनों राज्य तथा दाहल के मध्य कहीं न कहीं अपनी सेनाको रखा था जिसका आतंक इनकों भयभीत किये हुए था।
प्रस्तुत प्रशस्ति से प्रकट होता है कि जयसिंह के अधिकार में - पुलगिरि - रेवु - माले केशुवलाल - वनवासी और वेल वाले आदि प्रदेश थे और उसकी राज्यधानी बलिपुर नामक स्थान में थी । बलिपुर का वर्तमान नाम बलेगम्बे है। और वनवासी से लगभग ३०-३५ मील दक्षिण पूर्व मयसूर राज्य के सीमोगा जिला में है। बलिपुर नगर बहुत प्राचीन स्थान है। स्थानीय कथानक के अनुसार तो वह सत्युग में होने वाले दैत्यराज बलि की राज्यधानी थी। और भगवान रामचंद्र और युधिष्ठिर आदि पाण्डवगण उक्त स्थान में आये थे । यदि कथानक को साशतः हम न भी स्वीकार करें तोभी हमे यह मानना पडेगा कि बलिपुर वनवासी प्रदेश और वनवासी नगर का समकालीन है। और वनवासी प्रदेश के मौर्यवंशोदभव अधिपतियों के समय राजनगरी होनेका सौभाग्य प्राप्त कर चुका है।
हमारी समझ में तिथि के संबंध में इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि प्रशस्ति शक संवत १००२ की है । क्योंकि इसकी तिथि चौलुक्य विक्रम संवत ४ है । एवं प्रस्तुत प्रशस्ति का विवेचन समाप्त करने पूर्व यदि हम वीर नोलम्ब जयसिंह के अधिकार गत प्रदेशों का विचार करें तो असंगत न होगा क्योंकि प्रस्तुत प्रशस्ति हमारी चौलुक्य चंद्रिका में जयसिहसे संबंध रखने बाली प्रशस्तियों में अन्तिम प्रशस्ति है।
बीर नोलम्ब जयसिंह से संबंध रखने वाली प्रथम प्रशस्ति शक १६६ और अन्तिम शक १००२ वाली है। और इन प्रशस्तियों की संख्या ७ है। हम यहां पर निम्न भागमे क्रमशः प्रशस्तियों का नाम दे उनके समानन्तर में कथित प्रदेशों का नाम देते हैं। संख्या. प्रशस्ति.
प्रदेश. १ - शक ६६९ अराकिरी प्रशस्ति
कोगली २ - शक ६७६ नेरल गुन्डी प्रशस्ति
ददिरवलिग सहस्र • बसकुन्डे
प्रयशत और कुन्डेल्म ३ --शक L६३ जतिंग रामेश्वर प्रशस्ति
गोन्देवाडी ४ - शक ६६५ हुलेगाल प्रशस्ति
सुलगाल ५ - शक १००१ आचपुर प्रशस्ति
वनवासी द्वादश सहस्त्र और • सन्तालिग सहस्त्र .
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com