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[ लाट नन्दिपुर खण्ड ६ - शक १००२ तुम्बर होसरु प्रशस्ति
वनवासी द्वादश सहस्त्र, सन्ता
लिग और षटसहस्त्र द्वय ७ - शक १००२ तुम्बर होसरु द्वितीय प्रशस्ति - पुलगिरि - रेवु · भाले केशुवा
ल वनवासी द्वादश सहस्त्र और
वेलवाड प्रदेश इन प्रदेशोंके अतिरिक्त भुवनमल्ल सोमेश्वर के लेखोंसे प्रकट होता है कि उसने गद्दीपर बैठने पश्चात जयसिंह को पोरंबिन्दु और नोलम्ब वाडी नामक दो प्रदेश दिये थे। इनमे पोरंबिन्दु का नामान्तर गोन्दावाडी है । एवं गोन्दविन्द का उल्लेख शक ६६३ की प्रशस्ति में आगया है । अतः जयसिंह के अधिकार भुक्त प्रदेशों में केवल एक की वृद्धि होती है। अपरंच कर्नाट देश इन्स्कृप्सन नामक ग्रंथ के वोल्युम १ पृष्ठ २८४ और २८६ में प्रकाशित हलगुठ और वालवीड के शक EEE - १००२ - १००३ और १००४ के लेखों से जयसिंह के मुक्त प्रदेशोंका नाम वेलवेला, सन्तालिग, बासवली और पुलगिरि पाया जाता है। इनमें पुलगिरि और सन्तालिग का उल्लेख प्रशस्ति संख्या ६ और ७ में है । अतः केवल वेलवला और वासबली नामक दो प्रान्त ही नये रह जाते हैं।
उधृत सूचि पर दृष्टिपात करनेसे ज्ञात होता है कि वनवासी द्वादश सहस्त्रका अन्तिम तीन प्रशस्तिओंमें और सन्तलिग का दो प्रशस्तिमें नाम आया है। अतः यदि हम इन पुनरुक्तियों का परित्याग करें तोभी विशुद्ध रूपसे जयसिंह के अधिकार में निम्नलिखित १८ प्रदेश पाये जाते हैं। १ - कोगली, २ - ददिरवलिग, ३ - वलकुण्डा अयशत, ४ - कुन्डेरु, ५ - गोन्दवाड़ी, ६. सुलगाल, ७ - वनवासी द्वादश सहस्त्रा, ८ - सन्तालिग सहस्त्रा, ६ - पुलगिरि, १० रेवु, ११ माले १२ - षट सहस्त्र द्वय, १३ - केशुवलाल, १४ - वेलवाडी, १५ - नोलम्ब वाडी, १६ - वासवली १७ - ताडदवाडी, और १८ - वेलवेला ।
जयसिंह के अधिकृत प्रदेशांका वर्तमान परिचय प्राप्त करना असंभव है तथापि यथासाध्य कुछ कर परिचय देते हैं। १ - कोगली. २ - ददिरवलिग ३ - वलकुन्डा त्रय शत ४ - कुन्दुर - का नामान्तर कुहुन्डी और कुन्डी है। यह कुन्डी त्रि सहस्त्र नामसे प्रख्यात था।
इसके अन्तर्गत वेलगांव जिला का अधिकाश प्रदेश और कलादगी वीजापुर का
दक्षिण पश्चिम भूभाग सामिल था। यह प्राचीन कुन्तल का एक विभाग है । ५ - गोन्दावाडी (पोरविन्द)
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