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चालुक्य चंद्रिका
पाचपुर प्रशस्ति
का
छायानुवाद। कल्याण हो । सकल संसार के आधार श्री पृथिवी पति महाराजाधिराज परमेश्वर परं भट्टारक सत्याश्रय कुल तिलक चौलुक्य वंश भूषण श्रीमान त्रिभुवनमल्लदेव के राज्य काल में उसका छोटाभाई सकल संसार में संस्तुत - लोक विख्यात - पल्लवान्वय - पृथिवीपति युवराज राजा परमेश्वर वीर महेश्वर विक्रमाभरण जयलक्ष्मी वल्लभ चौलुक्य चूडामणि - युद्धमे त्रिनेत्र - पवित्र क्षत्रिय - मदमस्त हस्ती समान बलशाली - धर्म धूरीन - शत्रु सेनाका यम श्रीमान वैयलोक्यमल्ल वीरनोलम्ब पल्लव परमनादि श्री जयसिंह देव सुख और शान्ति के साथ वनवासी द्वादश सहस्त्र प्रदेशका शासन करता था।
और जयसिंहदेवका चरण सेवक पंच महाशब्द अधिकार प्राप्त - सामन्तोका स्वामी महाविकराल दण्ड नायक - विद्वानो का मित्र - स्ववंशउजागर - संसारका एकाधार - सत्य सन्ध - बृहस्पति समान विचक्षण - अन्य स्त्रियो को पुत्र समान - सदगुणागार दोनों राजाओंको आनन्द दायक - परन्तु त्रयलोक्यमल्ल वीरनोलम्ब जयसिंहका चरण किंकर • शत्रु मान मर्दकप्रभृति विरुदोपेत • महा प्रधान - प्रधान दण्ड नायक - सन्धि बिग्रही ताम्ब्ररस सन्तालिग सहस्त्र प्रदेश
और अग्राहारों का शासन और दुष्टोंका निग्रह तथा शिष्ठोंका पालन करता था । उक्त नाडके राज प्रतिनिधि ने अपनी आज्ञा को माच्ची राजा पर प्रकट किया:
संसारकी कली रूप सिन्दवाडी है। और उसके अग्रहारों में परम रमणीय तथा आकर्षक घेलगली है। इसका रत्न परम प्रख्यात अत्री गेत्र में माची उत्पन्न हुआ। उक्त महापुरुष सोमथाप और अरवीकाली का पुत्र सकल. सद्गुणों का आगार स्ववंश उजागर विद्वानोका आश्रय माची राजाके राज प्रतिनिधि की आज्ञा अनुसार राजधानी अदासुर के उत्तर दिशावर्ती तीर्थके पूर्वोत्तरमें भगवान महेश्वर, आदित्य और विष्णु मन्दिर चौलुक्य विक्रम वर्ष ३ सिध्धार्थी संवत्सरमें निर्माण कराया और उत्तरायण संक्रान्ति के समय यम नियम आदि साधन चतुष्ट्य संपन्न तथा स्वध्याय रत्त अनन्त शिब पण्डितको पाद द्रक्षालण पूर्बक कथित मन्दिरों के नित्य नैमित्तिक पुजा अर्चा आदि निबाहार्थ संकल्प करके दान दिया ।
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