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[ लाट वासुदेवपुर खण्ड
आचपुर प्रशस्ति
विवेचन.
प्रस्तुत प्रशस्ति मयसूर राज्य के सिमोगा जिला के सागर नामक तालुकाके अनन्तपुर नामक ग्राम के समीप लगभग तीन माईलकी दूरीपर अवस्थित आचपुर नामक तीर्थमें लगी है। अनन्तपुर ग्राम अनन्तपुर नामक होवलीका प्रधान नगर है। अनन्तपुर ग्राम सागरसे १५ मील की दूरी पर सिमोगा-गेरसोवा रोडपर है। अनन्तपुर का मध्यकालीन नाम आनन्दपुर और पुरकालीन अदासुर है। अदासुर नाम अदासुर नामक हुमचापति के नामानुसार पड़ा है। अदासुर जिनदत्तका विरोधी था। और उसका समय आठवी शताब्दीका मध्यकालीन है। अदासुर अपने प्रारम्भ से लेकर वर्तमान समय पर्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यहांतक कि सन १८३० में भी हैदरअली और टिपू के समय अनेक युद्धका क्षेत्र बना है।
अदासुर-अनन्तपुर का महत्व इससे भी प्रकट होता है कि अनन्तपुर और उसके आसपासमें चौलुक्यों के अनेक लेख पाये जाते हैं। उन्हीं अनेक लेखोंमें से एक प्रस्तुत प्रशस्ति है। यह कथित आचपुर तीर्थमें ३.१/२ X २.३/४ आकारके शिला खंड पर उत्कीर्ण है। इस लेख की पंक्तिओंकी संख्या ४० है। इसकी लिपि प्राचीन हाले कनाडी और भाषा संस्कृत और कनाडी मिश्रित है।
__ प्रशस्ति में चौलुक्य राज विक्रमादित्यको अधिराजा और वीरनोलम्ब पल्लव परमानादि जयसिंह को युवराज तथा वनव सीका राजा रूपसे उल्लेख किया गया है। एवं युवराज जयसिंह देवके सामन्त और महा प्रधान दण्ड नायक सन्धि विग्रही माची राजा का उल्लेख सन्तालीग सहस्त्र प्रदेश के शासक रूपसे करके उसे आदासुर तीर्थ क्षेत्र में राज प्रतिनिधि अर्थात युवराज जयसिंह देवकी आज्ञासे भगवान महेश्वर, आदित्य और विष्णुके मन्दिरका निर्माण करने तथा उनके भोगरागादि के निर्वाहार्थ ग्राम दान करनेवाला वर्णन किया है। प्रशस्ति कथित अदासुर तीर्थ वर्तमान अनन्तुपुर ग्राम और आचपुर तीर्थ है। पुरातन अदासुर ग्राम और वर्तमान अनन्तपुर से पुरातन वनवासी द्वादस सहस्र उत्तर और सन्तलिग सहस्त्र दक्षिण था। वनवासी नगर आजमी वनवासी नामसे ख्यात है और अनन्तपुरके उत्तरमें कुछ पश्चिम भुका हुआ लगभग ५० मील पर अवस्थित है।
प्रशस्ति की तिथि चौलुक्य विक्रम संवत् में दी गई है। चौलुक्य विक्रम संवत चलानेवाला विक्रमादित्य छठा अर्थात् विरनोलम्बका मझलाभाई और प्रशस्ति कथित त्रिभुननमल्ल है
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