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.[ लाट वासुदेवपुर सड शक १०४ और विवेचनीय शक ६८६ में ८२ वर्षका अन्तर है। इधर संवत्सरोंकी संख्या केवल ६० हैं। पुनश्च उनमेंसे मी १६ व्यतीत हो गये हैं। अतः संवत्सरकी संख्या ४८ हैं। इस ४८ को ८२ बनाने के लिये हमे संवत्सर चक्रका पूर्ण परिभ्रमण कर पुनरावर्तन करना पड़ेगा और ३८ संख्या वाले चक्रवर्ती संवत्सर पर्यन्त पहुंचना होगा।
___संवत्सर चक्र पी ३८ की संख्या विष्णु की है। वह १८ वे नामको लेकर पुरा होता है। अब देखना है कि विष्णु की वीसी वाले १८ वें संवत्सरका क्या नाम है। उक्त वीशी के नामचक्र पर दृष्टिपात करने से १८ वी संख्यावाला संवत्सर क्रोधी संवत्सर प्राप्त होता है। अतः इस प्रकारमी हमारा पूर्व कथन कि, शक ६८६ में क्रोधी संवत्सर था सिद्ध हो गया। अब केवल मात्र शक ६७६ में जय संवत्सरका होना निश्चित करना मात्र रह गया है। यह अत्यन्त सहज है, क्योंकि शक ६८६ से पूर्व शक ६७६ पडता है। जब ६८६ में विष्णुकी वीशीका १८ वां संवत्सर क्रोधी है तो उसे १. वर्ष पूर्व अर्थात विष्णुकी वीशीका ८ वां संवत्सर पड़ेगा । विष्णुकी वीशीका आठवा संवत्सरका जय नाम है । इस प्रकार मी हमारा पूर्व कथन, कि जय संवत्सर शक ६८६ में नहीं वरन् शक ६७६ में था सिद्ध हो गया। अतः हम निशंक होकर प्रकट करते हैं कि प्रस्तुत प्रशस्ति का शक वर्ष १८६ के स्थान ६७६ में भूल से उत्कीर्ण हो गया।
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