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चौलुक्य चंद्रिका ]
लाटपति त्रिलोचनपाल
शासन पत्र ।
विवेचन.
प्रस्तुत लेख लाट देशके प्रख्यात नगर सूरत के एक कंसारा के पाससे श्री एच. एच. ध्रुव को निर्भय राम मनसुखराम के द्वारा प्राप्त हुआ था। जिसका प्रकाशन ध्रुव महोदयने इन्डीयन ऐन्टिक्वेरी वोल्युम १२ में किया था। कथित लेख लाट नंदिपुर पति चौलुक्यराज त्रिलोचनपीला कृत दानका प्रमाण पत्र है। यह तांबेके तीन पटॉपर उत्कीर्ण है। तीनों पटी के मध्य में दो छिद्र बनें हैं। उक्त छिंद्रों में कड़ियां लगी हैं। राजमुद्रा में राजवंशको राज्यचिन्हें मैंगवान शंकरको मूति बनाई गई है। लेखकी लिपी देव नागरी और भाषा संस्कृत है। प्रथम पंक्ति और मध्यकी पंक्ति का कुछ अंश और अंतकी पंक्ति गद्य और शेष लेख पचमें है। लेखके पद्य विविध वृत्तों के छंद हैं। लेखकी तिथि पौष कृष्ण अमावास्या विकृत संवत्सर और शक वर्ष ९७२ है। लेखका लेखक महा संधिविग्रहिक शंकर है।
लेखका प्रारंभ " नमः विनायकाय" से किया गया है । इसके पश्चात दूसरा बाक्य "स्वस्ति जयोऽभ्यदयश्च" है। इसके बाद लेखकी कविता का प्रारंभ होता है। प्रथम भावी तीन पद मंगलाचरण युक्त हैं। चार से सात पर्यन्त चार श्लोक चौलुक्य वंशको उत्पत्ति वर्णन करते हैं। ८ और ६ श्लोक राज्यवंश संस्थापक वारप देवके गुणगान करते हैं। पंचात श्लोक १० और ११ गोरगिराज का, १२-२२ कीर्तिराजकी, २३-२६ वत्सराज का और २७-३० दान कर्ता त्रिलोचनपालके शौर्य आदि का वर्णन करते हैं। . . . . . . . .
श्लोक ३१ शासन कर्ता त्रिलोचनपालके विविध दानोंका, ३२-३३ शासन पत्र की तिथि तथा प्रदत्तग्राम और स्थानादि का अभिगुण्ठन करते हैं। ३४-४० श्लोकों में दान प्रतिग्रहीता ब्राह्मण और प्रदत्त प्रामकी सीमादि का विवरण है। अन्ततोगत्वा श्लोक ४१-४६ भूदानका महत्व, पालन का फल और अपहरणका प्रायश्चित आदि बताता है लिखके अन्तमें शासनकर्ता त्रिलोचनपाल का हस्ताक्षर "स्व हस्तो श्री त्रिलोचनपालस्य रूपसे दिया गया है।
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