________________
( लाट नन्दिपुर खण्ड उठा उस समय सहसा उसके समस्त बन्धुगण उसके शौर्य से आतप्त हो अपने खग पूण हाथको उपर उठाये अर्थात उसकी त्रिलोचनपालकी आधिनता स्वीकार किये ॥ ३१ ॥
धर्मात्मा त्रिलोचनपालने त्रयलोक को नश्वर मान ब्राम्हणों को गायें-भूमि और सुवर्ण दान दिया ॥ ३२॥
शक ६७२ विकृत संवत्सर के पौष कृष्ण अमावास्या तिथि मंगलवारको-सूर्यग्रहण के समय पश्चिम समुद्र तट के अगस्त्य तीर्थ में जाकर ॥ ३३-३४॥
कुशिक गोत्री विश्वामित्र-देवरात और यादव नामक तीन प्रवर वाले माधव नामक भार्गव नाम्हण को नवशत मण्डलके द्विचत्वारी नामक धिलीष्वर पथकान्तवर्ती एरथान प्राम चतुराघाट युक्त समस्त आय के साथ त्रिलोचनपाल ने हाथमें जल लेकर दान दिया है ।। ३५-३६-३७ ॥
प्रदत्त ग्राम का दान क्रमागत पूर्वदत्त देव ब्राम्हण दाय वर्जित है। इस प्रदत्त प्रामकी पूर्व दिशा में नागम्बा और तन्तिका-आग्नेय दिशा में वटपद्रक याम्य दिशामें लिगंवट शिव-नैऋत्य दिशामें इन्दोत्थान- पश्चिम दिशा में बहुनदश्व-वायव्य दिशा में टेम्बरूक, सौम्य दिशामें तलपद्रंक और इशान दिशा में करूण प्रामादि आठ ग्राम हैं ॥३८-३९-४०॥
इन चारो आघाटो से आवेष्ठित समस्त प्रायों के साथ इस प्राम को-कथित द्विजवर माधव के-उपभोग में विकल्पना अर्थात बाधा न हो ॥४१॥
__ साधु समाज के किसी व्यक्तिको इसमें बाधा न करना चाहिए। यदि कोई बाध उपस्थित करेगा तो उसे पाप होगा ॥४२॥
पालनेमे पुन्य और अपहरणमे पातक होता है । कहा मी गया है ॥४३॥
श्री राम अपने तथा अन्य वशोभत भावी राजाओं से आदेश करते हैं कि राजाओं का यह सामान्य धर्म है कि वे अपने पूर्व भावी राजाओं चाहे वे अपने अथवा दुसरे वंशके ही क्यों न हो-उनके धर्मदायकी रक्षा करें ॥४४॥
कन्या गाय तथा अर्ध अंगुली भूमिका भी अपहरण करने वाला चंद्र सूर्य स्थिति पर्यन्त नर्कमें वास करता है ॥४॥
पूर्वभावी राजाओं के-धर्म अर्थ काम और मोक्षकी इच्छा वाले को-यशको फैलानेवाले धर्मदाय को निर्माल्यके समान मान कर उसका अपहरण कोइभी साधु व्यक्ति नहीं करता ॥४६||
सगरादि बहुतसे राजाओं ने इस वसुधाका भोग किया है किन्तु भूमिदानका फल उसको ही होता है जिसके अधिकारमें जब वसुधा होती है ॥ ४ ॥
महासन्धि विप्रहिक शंकरने लिखा । हस्ताक्षर श्री त्रिलोचनपाल ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com