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[ लाट नन्दिपुर खण्ड
लेखका साधारण रूपेण भावार्थ देनेके पश्चात हम इसके विवेचन में प्रवृत्त होते हैं। और सर्व प्रथम लेख कथित चौलुक्य वंशकी उत्पत्तिको हस्तगत करते हैं । वंशावली are करने वाले कथित लोकों से प्रयट होता है कि भगवान ब्रह्मा के चुलुक रूप समुद्र में उनके हृदय में दैत्यों के उपद्रव जन्य खेदात्मक मंदरके मथन से राजरत्नोंका मूल पुरुष उत्पन्न हुआ । उसनें उत्पन्न होते ही नमन कर ब्रह्मासे पूछा कि हे भगवान हम क्या करें। उसकी विनम्र वाणी सुनकर ब्रह्माने आदेश दिया कि हे चौलुक्य राष्ट्रकूट वंशी कान्यकुब्ज नरेशकी कन्या को प्राप्त कर - संतान उत्पन्न कर । चौलुक्य वंश जिस प्रकार पर्वत से निकली हुई नदिओं से पृथिवी परिपूर्ण है उसी प्रकार संसार में व्याप्त होगा" । चौलुक्य चंद्रिका aa aush प्राक्कथन नामक शीर्षकके अन्तर्गत चौलुक्य वंश की उत्पत्ति आदि का हमने पूर्ण रूपेण विवेचन किया है । और अकाट्य रूपेण सिद्ध किया है कि प्रस्तुत लेखके कवि शंकर और उसके कुछ परकाल में होने वाले वातापि कल्याण के चौलुक्य राज विक्रमादित्य छठे के राज्य पण्डित बिल्हण एवं पाटणके चौलुक्यों के इतिहास लेखक जैन पण्डित गरण में से किसीको चैलुक्यों के वास्तविक वंशवृत्तका ज्ञान नहीं था । उन्हों ने अपनी अज्ञानता अथवा निरंकुश कल्पनाभावी भावुकता के कारण चौलुक्य पदके यौगिक अर्थको लक्ष बना अभूतपूर्व कल्पना की है । अतः यहां पर पुनः विवेचन में प्रवृत्त होना पिष्ट पेषण और समयका दुरुपयोग मान आगे बढते हैं। आशा है पाठक हमें क्षमा करेंगे और विशेष बातों को जानने के लिये उक्त स्थानको अवलोकन करने के लिये कष्ट उठावेंगे ।
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हम ऊपर बता चुके हैं कि प्रशस्ति के ८ से ६१ पयन्त में त्रिलोचनकी वंशावली और वंशावली गत पुरुषोंका कुछ ऐतिहासिक विवरण अलंकार के आवरण से ढक दिया गया है । इन श्लोकों के पर्यालोचन से वंशावली में वारपराज, गोरगिराज, कीर्तिराज वत्सराज और त्रिलोचनापाल आदि पांच नाम पाये जाते हैं । परन्तु त्रिलोचनपालके दादा और लाट देश प्राप्त करनेवाले वारपराज के पौत्र कीर्तिराजके शक ६४२ के शासन में वंशावली का प्रारंभ वारप के पिता निम्बारकसे किया गया है। अतः दोनों शासन पत्रोंके तारतम्य से निम्न वंशावली त्रिलोचनपाल पर्यन्त होती हों
निम्बा र क
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वार पराज
गोरगि राज
| कीर्तिराज
वत्स राज
T त्रिलोचन पाल
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