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चौलुक्य चंद्रिका ]
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इतिहास से भी समर्थन होता है और प्रगट होता है कि मुसलमानोंने मौर्य वन पर आक्रमण करने के पश्चात् मालवा उज्जैन के प्रति गमन किया था । श्रतः हम निश्चय के साथ कह सकते हैं कि मुसलमानी इतिहास का बहिरमद मौर्य वन है । ताम्र पत्र कथित गुर्जर भरूच के गुर्जर और चापोत्कट, भीनमाल के नावड़ा हैं। चावड़ों ने भीनमाल के गुर्जरों से मारवाड़ का राज्य प्राप्त किया था । मुसलमानों का कमलेज वर्तमान कमरेज शासन पत्र का कार्मण्येय है। हमारी समझ में मुसलमानों ने भरूचके गुर्जरों को विजय करनेके पश्चात चौलुक्यों के राज्य पर दृष्टिपात किया होगा । और आक्रमण करने के विचार से जब वे आगे बढ़े होंगे तो पुलकेशी ने कमलेज नामक दुर्ग के समीप आगे बढ़कर उनका मुकाबला किया होगा । आजभी भरूचसे नवसारी भूपथसे आने वालों को कमरेज होकर आना पड़ेगा । परन्तु मुसलमानों को कमरेज के समीप चौलुक्य सेना से सामना होतेही लेने के देने पड़े होंगे। और वे बाध्य होकर स्वदेश लौट गये होंगे।
हम देखते हैं कि मुसलमानी इतिहासमें मुसलमानोंके कमलेज विजयका उल्लेख है । परन्तु हमारी समझमें यह मुसलमान ऐतिहासिकोंकी डींगमात्र है। यदि वास्तवमें वे कमलेजको विजय किए होते तो वे अवश्य नवसारीतक जाते और उसे लूटते । क्योंकि नवसारी चौलुक्य राज्यकी राज्यधानी थी। वैसी दशामें अपनेको कमलेज विजेता लिखनेके स्थानमें की नवसारी विजेता लिखते । हमारी इस धारणाका समर्थन इस बात से भी होता है कि कमलेज उस समय कोई राज्य नहीं, वरन नवसारीके चौंलुक्योंका एक विषयमात्र था । अतः हम शासनपत्र के कथनको निवांत और ऐतिहासिक सत्य मानते हैं।
हमारी समझमें शासनपत्रके कथनका एक प्रकार से पूर्णरूपेण विवेचन हो गया । श्रब केवल उसके संवत्सरका विचार करनामात्र शेष है। हमारी समझमें इसी शासनपत्र के संवत्सररका निर्णय होनेसे नक्सारीके चौलुक्योंके अन्य तीन लेखोंके संवतोंका निर्णय होगा । हम पूर्वमें मुसलमान और मुसलमानी इतिहासका अनेक बार उल्लेख कर चुके हैं। और फिर भी हमको उसका आश्रय लेना पड़ता है। हम पूर्वमें बता चुके हैं कि आक्रमणकारी मुसलमान सेना के सेनापति जुनेदको खलीफा इस्सामने सिन्धका शासक बनाया था। खलीफा हस्सामका समय हिजरी १०५ - १२५ पर्यन्त है । हिजरी सनका प्रारंभ विक्रम संवत ६७६ में हुआ था। अतः हिजरी १०५=
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