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[प्रावकथन बलिहारी अलौकिक न्याय परायणताकी ? खैर थोड़े दिनोंके वाद संघने पुरन्दरकी इस संधिको तोड़ दिया । उनके तोड़नेका कारण यह था कि बोर्ड ओफ डायरेक्टरकी दृष्टि में राघोबा कृत सूरत वाली संधि न्यायोचित ठहरती थी । और उसने उसके पालनका आदेश किया। अतः सन १७७८ में संघने राघोबाके साथ दूसरी संधि की और उनका मरहटोंके साथ प्रत्यक्ष विग्रह प्रारंभ हुआ । इसी अवसरमें संघके नेता हेस्टींग्सने कूटनीतिसे काम लिया। माधोजी भोंसलेसे गुप्त संधि कर युद्धमें प्रवृत्त होने से उसे पृथक रखा । जमरल गोडार्ड भोपालके नवाबसे मैत्रीकर गुजरातमें घुसा । कर्नल योकाम सिंधियाके रात्रु गोहदके राजासे मैत्री स्थापित कर सिंधियासे भिड़ गया। और सन १७८१ में फतेसिंह गायकवाड़से मैत्री की जिसकीशर्ते ( १ ) गायकवाड़ पेशवासे स्वतंत्र माना जायगा (२) अंग्रेज गायकवाड़की सहायता ३००० फौजसे करेंगे (३) समस्त गुजरात प्रदेश अंग्रेज और गायकवाड़ आपसमें वाट लेंगे। बादको दोनोंने डभोई और अहमदाबादको हस्नगत किया। अन्तमें महाराष्ट्रमें घुसा परन्तु आगे नहीं बढ़ सका । किन्तु मुम्बईकी सेनाने पानवेल, कल्याण, मुम्बई आदि विजय किया । तथापिं संघको हैदरअलीके साथ बाले युद्धके कारण सन १७८२ मे सलवाईकी निम्न शर्तवाली संधि करनी पड़ी। .
१-सिंधियाके कुल किला आदि संघ वापस करेगा। २-भरुच सिंधियाको समर्पण करेगा। ३-संघको शष्टि द्वीपादि मिलेगा। ४-रघुनाथरावको २५००० मासिक वृत्ति मिलेगी। परन्तु पेशवापदकी प्राप्तिपर
दृष्टिपात न करेगा। ५-संघ अहमदाबाद प्रदेश फतेसिंहराब गयकवाड़को समर्पण करेगा। ६-संघ सवाई माथवरावको पेशवा स्वीकार करेगा। ७-पेशवा अंग्रेज संघके अतिरिक्त अन्य यूरोपियन व्यापारियों को सुगमता नहीं देगा। -संघ रघुनाथरावको कभी भी भविष्यमें आश्रय नहीं देगा । और पेशवाके अन्तर प्रबन्ध और अन्यान्य बातोंमें हस्तक्षेप नहीं करेगा।
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