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चौलुक्य चंद्रिका]
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परन्तु सन १७६५ में सवाई माधवरावकी मृत्यु हुई और पेशवा पदका विवाद उठा तो अंग्रेजोंने कथित सन्धिकी शर्तोंकी उपेक्षा कर हस्तक्षेप करना प्रारंभ कर दिया । क्योंकि उन्हें उपयुक्त अवसर मिला। इस समय पेशवा पदका अभिलाषी राघोबाका पुत्र बाजीराव था । दौलतराव सिंधियाने उसको कैद कर उसके भाई चिमनाजीरावको पेशवा बनाने चला । परन्तु नाना फडनवीसने दौलतरावका विरोध कर उसे बन्दीमुक्त किया । अतः वह पुन: सन १७६६ में पेशवा बना। पेशवा बनने बाद उसने सिंघियासे मिल कर नानाको बन्दी किया । नानाके बन्दी होने पश्चात् वह सिंधियाके विरुद्ध हुआ । अतः उसने नानाको छोड़ दिया । और वह सन १८०० में मर गया । नानाके मरनेके पश्चात बाजीराव अपने सरदारों के साथ लड़ने झगड़ने लगा । उसके भाई विठोजीरावको मरवा डाला । दौलतराव सिंधियाको सर करनेके विचारसे उसके और जसवन्तराव होलकरके विवादमें घुसा परन्तु होलकरके विरुद्ध चलने लगा । उसकी जागीर जप्त की । उसके भतीजे खण्डेरावको कैद किया । अन्तमें दौलतरावको जसवन्तने सन १८०२ के अक्टोबरमें पूना में हराया और राघोबा के दत्तक पुत्र अमृतराव के पुत्र भाष्कररावको पेशवा बनाया । अतः बाजीराव अंग्रेज बल्पिक संघके शरण गया । और सन १८०२ के ३१ वीं दिसंबरको बसई नामक निम्न सन्धिपर हस्ताक्षर किया ।
१ - अंग्रेज बणिक संघ और बाजीराव एक दूसरेको आक्रमण प्रत्याक्रमण समय सहाय प्रदान करेंगे ।
२- प्रेज बाजीरावको पेशवा पद प्राप्त करनेमें सहाय देंगे ।
३ - इसके उपलक्ष में बाजीराव अंग्रेजों को २६००००० वार्षिक आयवाला प्रदेश देगा ।
४ - एक प्रेज सेना अपनी सेनामें रखेगा ।
५- किसी अन्य युरोपियन को अपनी सेनामें नहीं रखेगा ।
६ - अपने राजनैतिक विवादको अंग्रेजोंकी मध्यस्थता से निर्णय करायेगा ।
७- इस निमित्त एक ब्रिटिश रेजिमेण्ट पूनामें रखेगा । गुजरात आदि छोटे राज्योंसे स्वत्व उठा लेगा ।
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