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चौलुक्य चंद्रिका) रघुनाथरावने विद्रोह किया परन्तु १७७४ के मार्चमें हार कर उत्तर हिन्दुस्तानमें गया। किन्तु किसी स्थानमें आश्रय न मिलनेसे सूरतमें श्राकर अंग्रेज वणिक संघसे प्रार्थना की। संघने निम्र शर्तोंपर सहाय देना स्वीकार किया।
१-संघ रघुनाथरावको पेशवापद प्राप्त करनेमें सैनिक सहाय प्रदान करेगा। २-संघके सैनिक सहाय प्रदानके उपलक्षमें रघुनाथराव पेशवापद प्राप्त करनेके अनन्तर:
अ) संघको सुरत और भरूचके आसपास २२५००० वार्षिक आयवाला भूभाग देगा।
आ) एवं सेनाका कुल व्यय रघुनाथरावको देना होगा।
इस संधिका नाम सूरत संधि पड़ा और संघने इसके अनुसार एक सेना देकर रघुनाथरावको पूना भेजा और दूसरी सेना कर्नल केटिंगकी अध्यक्षतामें गुजरातमें रवान। की । कर्नल केटिंगकी सेनाने गुजरात जाकर अड़ास नामक स्थानमें पेशवाकी सेनाको हराया । परन्तु रघुनाथरावके साथ जानेवाली सेनाको मरहटोंके सामने मुहकी खानी पड़ी। संघकी सेनाको मरहटोंसे पिटते देख कर कलकत्ताके प्रधानने रघुनाथरावके साथ सन १७७५ की सूरतवाली संधिको अन्यायपूर्ण बताकर अस्वीकार किया। पेशवासे दूसरी संधि स्थापित करनेके लिये मेजर आप्टनको इस वर्षके अन्तमें पूना भेजा। मिस्टर आप्टनने सन १७७६ के मार्च निम्न शर्तके साथ संधि की । जो पुरन्दरकी सथिके नामसे अभिहित हुई ।
१-संघ राघोबा (रघुनाथराव ) को नाना फडनवीसके सुपुर्द करेगा। २-संघ संधिकी शर्त पूरी करेगा इसको विश्वास दिलानेके लिये अपने दो कर्म
चारियों को प्रतिभूरूपमें पूना भेजेगा। ३-भरूचके पासवाला भूभाग सिन्धियाको सौंप देगा . ४-भविष्यमें संध रघुनाथरावसे कुछ मी सम्बन्ध न रखेगा । ५-रघुनाथरावको ३००००० वार्षिक मिलेगा। और उसे कोपरगांवमें रहना होगा। ६-संघ पेशवाकी सत्ता स्वीकारेगा।
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