________________
अस् ११ भुं ]
છ શિવાજી ચરિત્ર
૩૫૯
રક્ષણુ માટે તેડવાની જરુર છે અને તે માટે એ પોતે લડી રહ્યા છે અને ઔરંગઝેબે હિંદુઓના કરવા માંડેલા છલના સામના કરવામાં મહારાજના હેતુ હિંદુ ધર્મીનું રક્ષણ કરવાના છે. વગેરે વાતા ખુલ્લે ખુલ્લી જયસિંહને જણાવવા માટે શિવાજી મહારાજે એક પત્ર લખ્યા હતા. એ પત્ર નીચે રજૂ કરીએ છીએ.
શિવાજી મહારાજના રાજા જયસિહુને પુત્ર.
“ए सर्दारों के सर्दार, राजाओं के राजा [ तथा ] भारतोयानको की कियारियों के व्यवस्थापक । ए रामचंद्र के चैतन्य हृदयांश, तुझसे राजपूतों की ग्रीवा उन्नत है ॥ तुझसे बाबरवंश की राज्यलक्ष्मी अधिक प्रबल हो रही है [ तथा ] शुभ भाग्य से तुझसे सहायता [ मिलती ] है । ए जवान ( प्रबल ) भाग्य [तथा ] वृद्ध (प्रौढ) बुद्धि वाले जयशाह, सेवा ( अर्थात् शिवा) का प्रभाण तथा आशिष स्वीकृत कर। जगत् का जनक तेरा रक्षक हो [ तथा ] तुझको धर्म एवं न्याय का मार्ग दिखावै । मैंने सुना है कि तू मुझपर आक्रमण करने [एवं ] दक्षिण प्रांत को विजय करने आया है। हिंदुओं के हृदय तथा आँखों के रक्तसे तू संसार में लाल मुँहवाला ( यशस्वी ) हुआ चाहता है । पर तू यह नहीं जानता कि यह [तेरे मुँह पर ] कालख लग रही है क्योंकि इससे देश तथा धर्म को आपत्ति हो रही है ॥ यदि तू क्षणमात्र गरेबान में सिर डाले (संकुचित होकर विचार करे ) और यदि तू अपने हाथ और दामन पर (विवेक) दृष्टि करे। तो तू देखे कि यह रंग किसके खून का है और इस रंग का ( वास्तविक ) रंग दोनों लोक में क्या है [ लाल या काला ] । यदि तू स्वयं [ अपनी ओर से ] दक्षिण विजय करने आता [ तो ] मेरे सिर और आँख तेरे रास्ते के बिछौने बन जाते। मेरे तेरे हमरकाब ( घोडे के साथ ) बडी सेना लेकर चलता (और) एक सिर से दूसरे सिरे तक (भूमि) तुमे सौंप देता ( विजय करा देता ) । पर तू तो औरंगजेब की ओर से (उस) भद्रजनों के धोखा देनेवाले के बहकाने में पडकर आया है । अब मैं नहीं जानता कि तेरे साथ कौन खेल खेलूँ । [ अब ] यदि मैं तुझसे मिल जाऊं तो यह मर्दी ( पुरुषत्व ) नहीं है। क्योंकि पुरुषलोग समयकी सेवा नहीं करते । सिंह लोमडीपना नहीं करते। और अगर में तलवार तथा कुठार से काम लेता हूँ तो दोनों ओर हिंदुओं को ही हानि पहुँचती है। बडा खेद तो यह है कि मुसलमानों के खून पोने के अतिरिक्त किसी अन्य कार्य के निमित्त मेरी तलवार को मियान से निक - लना पडे। यदि इस लडाई कि लिए तुर्क आए होते तो [हम ] शेरमदों के निमित्त [ घर बैठे ] शिकार आए होते । पर वह न्याय तथा धर्म से वंचित पापी जो कि मनुष्य के रूप में राक्षस है । जब
अफजल खाँ से कोई श्रेष्ठता न प्रकट हुई [ और ] न शाइस्तः खा की कोई योग्यता देखी । [ तो ] तुमको हमारे युद्ध के निमित्त नियत करता है क्यों कि वह स्वयं तो हमारे आक्रमण के सहने की योग्यता रखता नहीं । [ वह ] चाहता है कि हिंदुओं के दल में कोई बलशाली संसार में न रह जाय । सिंहगण आपस ही में [ लड भिड कर ] घायल तथा श्रांत हो जायँ जिसमें कि गीदड जंगल के सिंह बन बैठें। यह गुप्त भेद तेरे सिर में क्यों नहीं पैठता । प्रतीत होता है कि उसका जादू तुझे बहकाए रहता है। तैंने संसार में बहुत भला बुरा देखा है। उद्यान से तैंने फूल और काँटे दोनों संचित किए हैं।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com