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છે. શિવાજી ચરિત્ર
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यह नहीं चाहिए कि तू हम लोगों से युद्ध करे [ और ] हिंदुओं के सिरों को धूल में मिलावे । ऐसी परिपक्क कर्मण्यता [ प्राप्त होने ] पर भी जवानी ( यौवनोचित कार्य ) मत कर, प्रत्युत सादी के इस कथन को स्मरण कर सब स्थानों पर घोडानहीं दौडाया जाता । कहीं कहीं ढाल भी फेंककर भागना उचित होता है । व्याघ्र मृगादि पर व्याघ्रता करतें हैं । सिंहाँ के साथ गृहयुद्ध में नहीं प्रवृत्त होते । यदि तेरी काटनेवाली तरवार में पानी है; यदि तेरे कूदनेवाले घोडे में दम है ॥ [ तो ] तुझको चाहिए कि धर्म के शत्रु पर आक्रमण करे [ एवं ] इसलाम की जड़ मूल खोद डाले। अगर देश का राजा दारा शिकोह होता । तो हम लोगों के साथ भी कृपा तथा अनुग्रह के बर्ताव होते । पर तूने जसवंत सिंह को धोखा दिया [ तथा ] हृदय में ऊँच नीच नहीं सोचा । तू लोमडी का खेल खेलकर अभी अघाया नहीं है [ और ] सिंहों से युद्ध के निमित्त ढिठाई करके आया है । तुझको इस दौड धूप से क्या मिलता है, तेरी तृष्णा तुझे मृगतृष्णा दिखलाती है। तू उस तुच्छ व्यक्ति के सदृश है जो कि बहुत श्रम करता है [ और ] किसी सुंदरी को अपने हाथ में लाता है । पर उसकी सौंदर्यवाटिका का फल स्वयं नहीं खाता [ प्रत्युत ] उसको अपने प्रतिद्वंदी के हाथ में सौंप देता है। तू उस नीच की कृपा कर क्या अभिमान करता है । तू जुझारसिंह को काम का परिणाम जानता है। तू जानता है कि कुमार छत्रसाल पर वह किस प्रकार से आपत्ति पहुँचाना चाहता था । तू जानता है कि दूसरे हिंदुओ पर भी उस दुष्टके हाथ से क्या क्या विपत्तियां नहीं आईं। मैंने मान लिया कि तैंने उससे है और कुल की मर्यादा ऊसके सिर तोडी है । का जाल क्या वस्तु है क्योंकि यह बंधन तो इजारबंद वह तो अपने इष्ट साधन के निमित्त भाई के रक्त [ तथा ] बाप के प्राण से भी नहीं डरता । यदि तू राजभक्ति की दोहाई दे तो तू यह तो स्मरण कर कि तैंने शाहजहाँ के साथ क्या बर्ताव किया यदि तुझको विधाता के यहाँ से बुद्धि का कुछ भाग मिला है [ और ] त पौरुष तथा पुरुषत्व की बड मारता है । तो तू अपनी जन्मभूमि के संताप से तलवार को तपावे [ तथा ] अत्याचार से दुखियों के आँसू से [ उसपर ] पानी दे | यह अवसर हम लोगों के आपस में लडने का नहीं है क्योंकि हिंदुओं पर [ इस समय ] बडा कठिन कार्य पडा है । हमारे लडके बाले, देश, धन, देव, देवालय तथा पवित्र देव पूजक - इन सब पर उसके काम से आपत्ति पड रही है । [ तथा ] उसका दुःख सीमा तक पहुँच गया है । कि यदि कुछ दिन तक उसका काम ऐसाही चलता रहा [ तो ] हम लोगों का कोई चिह्न [ भी ] पृथ्वी पर न रह जायगा । बडे आश्चर्य की बात है कि एक मुट्ठी भर मुसलमान हमारे [ इतने ] बडे इस देश पर प्रभुता जमावैं । यह प्रबलता [ कुछ ] पुरुषार्थ के कारण नहीं है । यदि तुझको समझ को आंख है तो देख। [ कि ] वह हमारे साथ कैसी गोटियाचाली करता है और अपने मुँह पर कैपा कैसा रंग रँगता है । हमारो पावों को हमारी हो साँकलों में जकड देता है [ तथा ] हमारी ही तलवारों से काटता है । हम लोगों को ( इस समय ) हिंदू, हिंदोस्तान [ की रक्षा ] के निमित्त बहुत अधिक यत्न करना चाहिए ! हमको चाहिए कि यत्न
[पर]
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हमारे सिरों को तथा हिंदू धर्म करें और कोई
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संबंध जोड लिया
उस राक्षस के निमित्त इस बंधन
से अधिक दृढ नहीं है ।
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