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[ ] भोर बरस जगह पाठक वर्गको विशेष निःसन्देह होनेके लिये प्रोवीरप्रभुके छठेकल्याण दिवसको दिखानेके लिये यहां श्रीआवश्यकचूर्णिका पाठ दिखाता हूं सो पष्ट४वे में प्रथम च्यवन कल्याणकका पाठ नीचे मुजव है यथा
तेणकाउणं तेणंसमएणं समणे भगवं महावीरे जेसे गिम्हाणं चउत्येमासे अटुमेपख्खे आसाढसुद्ध तस्सणं आसाढ़ सुद्धस्स छठी दिवसेणं महाविजय पुप्फुत्तर पवर पुंडरोयातो महाविमाणातो वीसंसागरोधम ठितीयातो अणंतरं चयं घहत्ता इहेव जंबूद्दीवेदीवे भारेहे वासे इमीसे उस प्पिणीए सुसमसुममाए समाए विइक्वंताए, एवं सुममाए, सुसम दुसमाएं, दुसम सुसमाए, बहु वितिक्कंताए सागरोवमकोड़ा कोडीए बायालोस वास सहस्सेहिं अणिआये पंचहत्तरियासे हिं अद्धनअमेहिय मासैहिं सेसाएहिं एकत्रीसाए तित्वगरेहिं इक्खाग कुल समुपत्र हिं कासवगुत्तहिं दोहिय हरिवंस कुलसमुपने हिं गोतमस्म गोत्तेहिं तेवीसाए तित्य गरेहिं वितिक्कतेहिं समणे. भगवंमहावीरे चरमतित्थगरे पुवतित्थगर निदिढे माहण कुंडग्गामे गरे उसमदत्तस्स माहणस्स कोडालस गोत्तस्स भारियाए देवाणदाए महाणोए जालंधरस गोत्ताए पुखरता परत्तकाल समयंमि हत्थुत्तराए णक्षतेण जोगमुवागण आहार वकंतीए भववक्कंतीए सरीरवक्तीए कुच्छिंसि गम्भ. ताए बकते समणेभगवमहावोरे त्तिमाणोवगते आविहुत्यापास्तामित्ति जाणइ, चयमाणे न जाणई चुएमित्ति जागह,
और इसके आगे चौदह स्वप्न तथा नमुत्थुणं वगैरहका अधिकार है पिर आगे पृष्ठ ९६ वे में गर्भहरणसे गर्भसंक्रमणरुप दूसरा च्यवन कल्याणकका पाठ नीचे मुजब है यथा
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