________________
[ ५४]
हको देखा तिसपरमी बहुत अपेक्षा शाबकारने हस्ती लिखा, तैसेही श्रीवीरप्रभुके उ कल्याणों के दिवसों को अनेक शास्त्राने खुलासे लिखे होतेभी श्रीपंचाशकजीम तथा उसीकी बत्ति बहुत तीर्थकर महाराजोंके पांच पांच कल्यापकोंकी अपेक्षासे श्रीवीर प्रभुकेभी पांच कल्याणक लिखे उससे छठा कल्याणक कदापि निषेध नहीं हो सकता है सीतो निष्पक्षपाती विवेकी तत्वज्ञ पुरुषों को अच्छी तरहसे विचार लेना चाहिये । • तथा औरभी पाठक वर्गको विनयविजयजीकी प्रत्यक्ष मायाचारीका नमूना दिखाता हूं कि-देखो विनय विजयजी बड़े विद्वान् तथा विशेष करके श्रीजैन शास्त्रोके जानकार प्रसिद्ध कहलाते थे इसलिये श्रीआवश्यक नियुक्रिमे तथाचूर्णिमें २, श्रीअभयकुमार चरित्रमें ३, श्रोमुलसा चरित्रमें ४, श्रीदशाश्रुतस्कंध सूत्र में ५, तथा तवृत्तिमै ६, श्रीशिषठिशलाकापुरुष चरित्र में 9, तथा श्रीवीरमभुके वीनों चरित्रोंमें १०, और श्रीकल्पसूत्र में १९, तथा इन्हीं सूत्रको ९ (नौ) व्याख्याओंमें २०, इत्यादि अनेक शास्त्रों में खुलासा पूर्वक श्रीवीरप्रभुके छठे कल्याणकके दिवसको प्रगटपने लिखा हुआहै जिसको जानते होतेमी बाल जीवोंको अपने गच्छ कदाग्रह के भ्रम, नेरनेके लिये श्रीपंचाशकजी सत्र वृत्तिके अभिप्रायको समझे बिना 'यदि षष्ट स्यात्तदातस्यापिदिन उतस्यात्' 'जो छठा कल्याणक होता तो उसीकासी दिवस कहते' इसतरहका लिखके भोलेजीवोंको दिखाया सो अभिनिवेशिक मिथ्यात्वको मायाचारीके सिवाय और क्या होगा सो विवेकी जन स्वयं विचार सकते हैं
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com