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अणुव्रत - दृष्टि
चाहिये, किन्तु उनका सम्बन्ध भविष्यसे समझना चाहिये। मैं उक्त अनुरोधको अयथार्थ नहीं मानता। उस परिभाषाके कारण अणुव्रतीको समय-समय पर अनेक उलझनोंका सामना करना पड़ता है । किन्तु यह कादाचित्क प्रसङ्ग है, उसके लिये आदर्शसे नीचे खिसकना अणुव्रती के लिये सुन्दर न होगा | कष्ट ही नियमोंकी कसौटी है । उक्त प्रकारकी घटनाओंसे ही जन साधारणका ध्यान सत्यकी ओर आकृष्ट होगा ।"
१२ - किसी सौदे में कटौती न करना अर्थात् बीचमें न खाना । बीचमें खानेका रोग भी जन-जनमें छा गया है। चार पैसेकी बस्तु खरीदकर लानेवाला नौकर भी एक पैसा बीचमें खाना चाहता है। बड़े-बड़े फार्मोंमें काम करनेवाले मुनीम और गुमाश्ते भी अवसर पाकर हाथ रंग ही लेना चाहते हैं । ऐसे किस्से तो आये दिन हुआ करते हैं कि अमुक व्यक्ति पुर्जेकी रकम लेकर या बैंकसे रुपये उठाकर चम्पत हो गया । ऐसे आदमियोंका लोग अभाव-सा प्रतीत करने लगे हैं जिन पर पूरा-पूरा भरोसा किया जा सके । पतन यहाँ तक हो चुका है कि रसोइया घी या चीनी चुरानेकी चेष्टा करता है, बिलोनेवाली मक्खन पर जी दे देती है, गोदुहा बीच में ही दूध पी जानेसे बाज नहीं आता। लोगों का जीवन बड़ा जटिल-सा होता जा रहा है। इधर व्यापार जगतकी ओर ध्यान देते हैं तो चलानीके कामवाले तो कहते हैं कि आढ़तियेके यदि हम सही भाव लगाते रहें तो हमारा व्यापार चल ही नहीं सकता। रूई, सोना, चान्दी, शेयर, सट्टा आदिका व्यापार व सट्टा करनेवाले तो अपनी आमदनी यही समझ बैठे हैं। खरीदना किसी भाव और व्यापारीको लिखना किसी भाव । यही हाल हर प्रकारकी दलाली करनेवालों है।
नियम बहुत व्यापक है, जीवनके हर पहलूमें घसी हुई इस प्रकारकी चोरीका निषेध करता है। इसका पालन करता हुआ अणुव्रती किसी भी क्षेत्रमें कितना विश्वस्त रहेगा यह स्वयमेव सोचा जा सकता है। यह भी स्वतः जाना जा सकता है कि यदि देश व संसारके अधिकांश
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