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अचौर्य -अणुव्रत इस विषयमें आज तक अणुव्रतियोंके अनेक अनुभव आचार्यवरके : समक्ष आये । बहुतसे अणुव्रतियोंने यह अनुरोध किया कि इस नियमकी आजतक की जानेवाली परिभाषाके अनुसार एक अणुव्रती जो किसी विशेष स्थितिके कारण टिकट बिना खरीदे गाड़ीमें बैठा, उसके लिये यह आवश्यक हो जाता है कि आगे चलकर वह पूछने या न पूछनेपर भी व्यवस्थापकों को पूरा किराया दे। इससे सच्चाईके साथ-साथ दुविधा बहुत बढ़ जाती है। ज्योंही वह आगेका टिकट बना देनेके लिये या कृत यात्राका किराया ले लेनेके लिये व्यवस्थापकोंको कहता है, वे उसकी सच्चाईकी कुछ कीमत नहीं करते प्रत्युत उसे तरह-तरहसे तंग करने लगते हैं। कई बार हमारे सामने ऐसे प्रसंग आये हैं एक-दो स्टेशनोंकी यात्राका किराया ले लेनेका अनुरोध कर देनेपर मूल स्टेशन, जहाँसे गाड़ी चली थी वहाँ तकका किराया लिया गया है और वह भी दुगुना । किरायेसे भी कहीं अधिक समयका अपव्यय किया गया जबकि बिना किराया दिये यदि निकलना चाहते तो बहुत आसानीसे निकल सकते थे। इस स्थितिमें यदि नियमका स्पष्टीकरण इस प्रकारसे हो कि अणुव्रती बिना टिकट यात्रा करनेकी भावना न रखे, यदि स्थितिवश उसे बिना टिकट खरीदे बैठ जाना पड़ता हो तो उसके लिये यह अनिवार्य नहीं कि अपनी ओरसे व्यवस्थापकोंको किराया ले लेनेका अनुरोध करे। अस्तु, अणुव्रतीकी सच्चाईमें भी कोई अन्तर नहीं आयेगा और वह बिना मतलबकी दिक्कतसे बचेगा। ___ आचार्यवरने समाधान किया,मैं मानता हूं, कि आजके युगमें लोगोंका दृष्टिकोण सच्चाईको महत्व देनेका नहीं है। यही कारण है, लोग उस
ओर नहीं झुकते क्योंकि उस मार्गमें कठिनाइयोंका सामना करना पड़ता है। अणुव्रती एक प्रामाणिक मनुष्य है, उसके आचरणोंका सर्वसाधारण अनुकरण कर सकते हैं। अतः उसकी प्रवृत्ति हेय नहीं होनी चाहिये। सुविधा और दुविधा वर्तमान क्षणसे ही नहीं देखी जानी
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